Sunday, October 9, 2011

ग़ज़ल- कई-कई रूप अब बदल के आती है.....

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता



कई-कई रूप अब बदल के आती है गजल,
आज सतरंगी साँचे में ढल के आती है गजल।

ए कभी जफर का हमसफर बनती ‘बृजेश’
लबों पे दर्द भरे गाने बन जाती है गजल।

खुसरो, दाग, दुष्यंत के लबों पे सजती सँवरती,
आज हिन्दुस्तानी ढाँचे में ढलती है गजल।

अब गजल महज इश्क के दीवानों की सदाएँ नहीं,
आजादी के दीवानों की भी ताने सुनाती है गजल।

हुस्न की मलिका की लटों में उलझ जाती कभी,
कभी सूफियों के मस्त कलामों को महकाती है गजल।

महलों के ख्वाबों में अलसाई सी रहती कभी,
तो कभी गरीब मजलूमों के दर्द बताती है गजल।

ए जहालत पे जम के फटकार लगाती कभी,
कभी इश्क की दिवानी बन इठलाती है गजल।

बिस्मिल, अशफाक रोशन की ताकत बनती कभी,
मस्ती के वतनपरस्ती के तराने सुनाती है गजल।

तासीर इसकी पाक गंगा जमुना सी लगती
जिस धरती से गुजरती रच बस जाती है गजल।

ए गजल तेरे कई रूप देखे है वक्त ने ‘बृजेश’,
वक्त पे जंगे आजादी के तराने कहती है गजल।

Saturday, October 8, 2011

ग़ज़ल - न जरूरी ये हरदम कि कर भला....

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता



न जरूरी ये हरदम कि कर भला तो भला होता है,
कभी होम करते भी किसी का हाथ जला होता है।

इन्सान की जिन्दगी भी क्या अजब शै होती,
सुकून की मस्ती तो कभी दर्द का जलजला होता है।

कई रिश्तों की अगन में झुलस जाता आदमी,
फूँककर भी छांछ पीता जो दूध का जला होता है।

मेहनत ही कामयाबी का सूत्र होता नहीं हर बार,
कर्म और भाग्य में अक्सर मुकाबला होता है।

‘बृजेश’ साथ देकर भी अपनों से चोट खाते कभी,
कौन जाने कब क्या किसी के दिल में पला होता है।