Monday, February 28, 2011

सरस्‍वती शतकम् भाग 3


सरस्‍वती शतकम्
संस्‍कृत गीति‍काव्‍य
श्‍लोक 51 से 75


यागेश्वरी-अचलभक्तिप्रदात्री भावेश्वरी।
आत्मेश्वरी स्थिरबुद्धिप्रदात्री नादेश्वरी।।५१।।
अन्वय - यागेश्वरी भावेश्वरी आत्मेश्वरी नादेश्वरी स्थिरबुद्धिप्रदात्री अचल भक्ति प्रदात्री ।
अर्थ - यागेश्वरी, भावेश्वरी, आत्मेश्वरी, नादेश्वरी ; माँ सरस्वती स्थिर बुद्धि प्रदात्री व अचल भक्ति भाव प्रदान करती हैं।

ज्ञानवती ज्ञानसागरज्ञानमयी ज्ञानेश्वरी।
अज्ञानसमूलविनाशिनी सदाचारेश्वरी।।५२।।
अन्वय - ज्ञानेश्वरी ज्ञानवती ज्ञानसागर ज्ञानमयी सदाचारेश्वरी अज्ञान समूल विनाशिनी।
अर्थ - माँ ज्ञानेश्वरी, ज्ञानवती, ज्ञानसागर, ज्ञानमयी सदाचारेश्वरी अज्ञान का समूल विनाश करने वाली हैं।

वीणाकरधारि‍णी शुभ्रवस्त्रावृता सत्त्वमयी।
लोकमङ्गलकारिणी विधात्री श्री: ज्योतिर्मयी।।५३।।
अन्वय - श्री: सत्त्वमयी ज्योतिर्मयी शुभवस्त्र आवृता विधात्री कर वीणा धारि‍णी लोक मङ्गल कारिणी।
अर्थ - श्री सत्त्वमयी ;सरस्वती ज्योतिर्मयी शुभ वस्त्र आवृता विधात्री कर में वीणा धारण करने वाली लोक मङ्गल कारिणी हैं।

विद्यामाता बुद्धिमाता वाचा सत्येश्वरी।
प्रज्ञामाता त्रैलोक्यमोहिनी भाग्येश्वरी।।५४।।
अन्वय - विद्यामाता बुद्धिमाता वाचा प्रज्ञामाता सत्येश्वरी भाग्येश्वरी  त्रैलोक्य मोहिनी।
अर्थ - विद्यामाता, सरस्वती बुद्धिमाता, वाचा, प्रज्ञामाता सत्येश्वरी भाग्येश्वरी  त्रैलोक्य-मोहिनी हैं।

विद्यात्मा भारती परमानन्द प्रदायिनी।
ईश्वरी भाषा आत्मानन्दसरसायिनी।।५५।।
अन्वय - भारती विद्यात्मा परमानन्द प्रदायिनी ईश्वरी भाषा आत्म आनन्द सरसायिनी।
अर्थ - भारती, विद्यात्मा ;सरस्वती परमानन्द प्रदायिनी, ईश्वरी भाषा माँ सरस्वती आत्म-आनन्द सरसाने
वाली हैं।

हिमवर्णा ह्रींकारी हर्षमयी सद्भावेश्वरी।
प्रज्ञामयी सन्मार्गप्रदात्री पुण्येश्वरी।।५६।।
अन्वय - प्रज्ञामयी पुण्येश्वरी सद्भावेश्वरी हिमवर्णा ह्रींकारी हर्षमयी सन्मार्ग प्रदात्री।
अर्थ - प्रज्ञामयी ;सरस्वती पुण्येश्वरी, सद्भावेश्वरी हिमवर्णा ह्रींकारी हर्षमयी सन्मार्ग-प्रदात्री हैं।

चेतनेश्वरी मात:! सरस्वति ददाति विनयम्।
सत्येश्वरी स्थिरमतिप्रदात्री साधकेभ्य:।।५७।।
अन्वय - मात:! सरस्वति चेतनेश्वरी सत्येश्वरी विनयम् ददाति, साधकेभ्य: स्थिरमति प्रदात्री।
अर्थ - माँ सरस्वती चेतनेश्वरी सत्येश्वरी हैं। आप सर्वदा विनय भाव देती हैं। आप साधकों को स्थिरमति प्रदान करने वाली हैं।

ज्ञानदात्री मोक्षदात्री शुभदा वचनेश्वरी।
विद्योत्तमा ब्रह्मज्ञानप्रदात्री शब्देश्वरी।।५८।।
अन्वय - ज्ञानदात्री मोक्षदात्री शुभदा वचनेश्वरी शब्देश्वरी विद्योत्तमा ब्रह्मज्ञानप्रदात्री।
अर्थ - महादेवी सरस्वती ज्ञानदात्री, मोक्षदात्री, शुभदा, वचनेश्वरी, शब्देश्वरी, उत्तम विद्या ब्रह्मज्ञान प्रदात्री हैं।

मन्त्रेश्वरी सन्मार्ग.सद्भावस्वरुपिणी।
छन्द: प्रभाहंकार-समूल-निवारिणी।।५९।।
अन्वय - मन्त्रेश्वरी सन्मार्ग.सद्भाव स्वरुपिणी छन्द: प्रभा अहंकार समूल निवारिणी।
अर्थ - मन्त्रेश्वरी महादेवी सरस्वती सन्मार्ग और सद्भाव स्वरुपिणी छन्द.प्रभा अहंकार का समूल निवारण करने वाली हैं।

परमज्ञानप्रदात्री सरस्वती ज्ञानदा।
माया-समूल-निवारिणी शारदे! मोक्षदा।।६०।।
अन्वय - ज्ञानदा मोक्षदा शारदे सरस्वती परम.ज्ञान.प्रदात्री, माया.समूल-निवारिणी।
अर्थ - ज्ञान देने वाली, मोक्ष देने वाली, माँ शारदा ;सरस्वती आप परम.ज्ञान प्रदात्री और माया का समूल निवारण करने वाली हैं।

सर्वसिद्धिसंधारिणीं कषाय-कल्मषहारिणीम्।
सतोगुणसंवाहिकां नमामि सिद्धिदायिनीम्।।६१।।
अन्वय - सर्व.सिद्धि-संधारिणीं, कषाय-कल्मष-हारिणीम्, सतोगुण संवाहिकां, सिद्धिदायिनीम् नमामि।
अर्थ -  सर्व सिद्धियों का संधारण करने वाली चित्त से कल्मष और कषाय, विकार को दूर करने वाली, सतोगुण की संवाहिका सिद्धिदायिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

आनन्दमङ्गलकारिणीं सरस्वतीं विनोदिनीम्।
समस्त-देव-पूजितां नमामि पतितपावनीम्।।६२।।
अन्वय - आनन्द.मङ्गलकारिणीं सरस्वतीं विनोदिनीम् पतितपावनीम् समस्त देव पूजितां नमामि।
अर्थ - आनन्द और मङ्गल प्रदान करने वाली सरस्वत-विनोदिनी, पतितों का उद्धार करने वालीए समस्त देवों द्वारा पूजित हैं। ऐसी पतित पावनी महादेवी सरस्वती को मेरा नमस्कार है।

सर्वविषादहारिणीं स्फटिकमालधारिणीम्।
नीर.क्षीर विवेकिनीं नमामि ब्रह्मवादिनीम्।।६३।।
अन्वय - सर्व विषाद हारिणीं स्फटिक माल धारिणीम् नीर-क्षीर विवेकिनीं, ब्रह्मवादिनीम् नमामि।
अर्थ - सभी दुखों को दूर करने वाली, स्फटिक माला धारण करने वाली, नीर-क्षीर विवेकिनी, ब्रह्मवादिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

निराश्रितावलम्बिनीं सर्वकष्टविच्छेदिनीम्।
भारतीं विशम्भरां नमामि बुद्धिवद्र्धिनीम्।।६४।।
अन्वय - निराश्रित-अवलम्बिनीं, सर्व-कष्ट-विच्छेदिनीम् भारतीं, विशम्भरां, बुद्धिवद्र्धिनीम् नमामि।
अर्थ - निराश्रित ;बेसहारा के लिए सहाराए सर्व कष्ट विच्छेदिन, नष्ट करने वाली भारती, विश्वम्भरा, बुद्धिवद्र्धिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

अनन्तश्रीविभूषिणीं सर्वविभूतिधारिणीम्।
ब्रह्मतत्त्वविवेचिनीं नमामि ब्रह्मभावनीम्।।६५।।
अन्वय - अनन्त श्री विभूषिणीं सर्व विभूति धारिणीम्ब्रह्मतत्त्व विवेचिनीं ब्रह्मभावनीम् नमामि।
अर्थ - अनन्त श्री विभूषिणी, सर्व विभूति धारिणी, ब्रह्मतत्त्व-विवेचिनी, ब्रह्मभाव वाली ब्रह्मभावनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

सत्य-सत्त्वनिरूपिणीं जगन्मङ्गलकारिणीम्।
निर्मलां चिदम्बरां नमामि हंसवाहिनीम्।।६६।।
अन्वय - सत्य-सत्त्व निरूपिणीं जगत्-मङ्गल-कारिणीम्, निर्मलां चिदम्बरां, हंसवाहिनीम्  नमामि।
अर्थ - सत्य-सत्त्व निरूपिणी, जगत्.मङ्गलकारिणी, निर्मला, चिदम्बरा, हंसवाहिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

ज्ञानसुधाप्रवाहिनीं सर्वानन्दसरसायिनीम्।
उदीप्तां ऋतम्भरां नमामि वीणावादिनीम्।।६७।।
अन्वय - ज्ञान-सुधा-प्रवाहिनीं, सर्व-आनन्द-सरसायिनीम् उदीप्तां, ऋतम्भरां, वीणावादिनीम् नमामि।
अर्थ - ज्ञान रुपी अमृत का हृदय में प्रवाह करने वाली, सर्व आनन्द बरसाने वाली, उदीप्ता, प्रकाशवती, ऋतम्भरा, वीणावादिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

अज्ञानान्धकारभेदिनीमात्मप्रकाशप्रदर्शिनीम्।
सकलब्रह्माण्डपूजितां नमामि वरदायिनीम्।।६८।।
अन्वय - अज्ञान-अन्धकार भेदिनीम् आत्म प्रकाश प्रदर्शिनीम्, सकल ब्रह्माण्ड पूजितां वरदायिनीम् नमामि।
अर्थ - अज्ञान अन्धकार को नष्ट करने वाली, आत्म प्रकाश प्रदर्शित करने वाली, सकल ब्रह्माण्ड द्वारा पूजिता वरदायिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

वाचा बुद्धिवद्र्धिनीं महापापविनासिनीम्।
दयाभावप्रदर्शितां नमामि पतितोद्धारिणीम्।।६९।।
अन्वय - वाचा, बुद्धिवद्र्धिनीं, महापाप-विनासिनीम्, दयाभाव-प्रदर्शितां, पतित उद्धारिणीम् नमामि।
अर्थ - वाचा, बुद्धिवद्र्धिनीं महापाप विनाशिनी दया भाव दिखलाने वाली, पापी का उद्धार करने पतितोद्धारिणी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

भक्ताभयप्रदायिनीं ब्रह्माप्रकाशप्रदर्शिनीम्।
अन्तस्तमोविच्छेदितां नमामि भक्तिदायिनीम्।।७०।।
अन्वय - भक्त-अभय प्रदायिनीं ब्रह्मप्रकाश प्रदर्शिनीम् अन्त: तम विच्छेदितां भक्तिदायिनीम् नमामि।
अर्थ - भक्त को अभय प्रदान करने वाली, ब्रह्म प्रकाश प्रदर्शित करने वाली, अन्त:करण के तम ; अन्धकार को दूर करने वाली, भक्ति प्रदान करने वाली भक्तिदायिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

तमोऽसुरसंहारिणीं सतोगुणसम्बद्र्धिनीम्।
सरस्वतीं स्वयंभूतां नमामि लोकभावनीम्।।७१।।
अन्वय - तम-असुर संहारिणीं, सतोगुण सम्बद्र्धिनीम्, सरस्वतीं, स्वयंभूतां, लोकभावनीम् नमामि।
अर्थ - तम ;अज्ञान-अन्धकार रूपी असुर ;राक्षस का संहार करने वाली, सतोगुण को बढ़ाने वाली लोकभावनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

प्रज्ञाज्ञानकारिणीं वाग्देवीं तारिणीम्।
सद्ज्ञान-प्रदीप्तां नमामि ज्ञानदायिनीम्।।७२।।
अन्वय - प्रज्ञा-ज्ञान-कारिणीं, वाग्देवीं, तारिणीम्, सद्ज्ञान प्रदीप्तां, ज्ञानदायिनीम् नमामि।
अर्थ - प्रज्ञा ज्ञान कराने वाली, वाग्देवी, तारण करने वाली, सद्ज्ञान  प्रदीप्त करने वाली, ज्ञान-दायिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

 अविद्यासर्वविमोचिनीं शारदां सुलोचनाम्।
सृष्टिमर्मानावृत्तां नमामि वीणावादिनीम्।।७३।।
अन्वय - सर्व अविद्या विमोचिनीं, शारदां, सुलोचनाम् सृष्टि-मर्म-अनावृत्तां, वीणावादिनीम् नमामि।
अर्थ .-सर्व ;सभी अविद्या को दूर करने वाली, सुन्दर नेत्रों वाली, सृष्टि के मर्म को ;अनावृत्त खोलने वाली वीणावादिनी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

परमानन्दस्वरूपिणीं शरणागतकष्टोद्धारिणीम्।
भारतीं भाग्यवद्र्धिनीं नमामि विक्षोभहारिणीम्।।७४।।
अन्वय - परमानन्द स्वरूपिणीं, शरणागत-कष्ट-उद्धारिणीम्, भारतीं, भाग्यवद्र्धिनीं, विक्षोभ-हारिणीम् नमामि।
अर्थ - परमानन्द स्वरूपिणी, शरणागत का कष्ट से उद्धार करने वाली, भारती, भाग्यवद्र्धिनी, विक्षोभ का हरण करने वाली विभोक्षहारिणी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

सर्वाभीष्टप्रदायिनीं जरारोगविनाशिनीम्।
शारदामानन्दितां नमामि शोकहारिणीम्।।७५।।
अन्वय - सर्व.अभीष्ट.प्रदायिनीं जरा.रोग.विनाशिनीम् शारदाम् आनन्दिता, शोक हारिणीम् नमामि।
अर्थ - सर्व-अभीष्ट देने वाली, जरा रोग विनाश करने वाली, माँ शारदा, जो आनन्दिता, शोक का हरण करने वाली हैं। शोकहारिणी महादेवी सरस्वती को मैं नमस्कार करता हूँ।

Sunday, February 27, 2011

सरस्‍वती शतकम् भाग 2

सरस्वती-शतकम् 

संस्‍कृत गीति‍काव्‍य
श्‍लोक क्रमांक 26 से 50 तक



दैहिकदैविकभौतिकसकलतापत्रयहारिणीम्।
नमामि शारदां सर्वानन्दमङ्गलकारिणीम्।।२६।।
अन्वय - दैहिकदैविक भौतिक सकल ताप त्रय हारिणीम् सर्व आनन्द मङ्गल कारिणीम् शारदां नमामि।
अर्थ - दैहिक, दैविक, भौतिक तीनों प्रकार के समस्त ताप हरने वाली सर्व मङ्गल व आनन्द प्रदायिनी माँ शारदा को मैं नमस्कार करता हूँ।

विद्योत्तमा दिव्यब्रह्मविद्याप्रदायिनी।
विश्वेश्वरी-अंतस्तलसघनतिमिरविनाशिनी।।२७।।
अन्वय - ;माँ सरस्वती, विद्योत्तमा विश्वेश्वरी अंतस्तल सघन तिमिर विनाशिनी दिव्य ब्रह्म विद्या प्रदायिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती विश्वेश्वरी विद्योत्तमा, अंतस्तल के सघन तिमिर ;अन्धकार को समाप्त करने वाली ब्रह्म विद्या प्रदान करने वाली हैं।

सर्व-प्राणिषु सर्वत्र विराजमाना शुभ्रेश्वरी।
साधकानामन्र्तज्र्योतिरूप्रदीप्ता मातेश्वरी।।२८।।
अन्वय - सर्व प्राणिषु सर्वत्र विराजमाना, शुभ्रेश्वरी, मातेश्वरी साधकानाम् अन्त: ज्योति: प्रदीप्ता।
अर्थ - मातेश्वरी, शुभ्रेश्वरी ;सरस्वती सभी प्राणियों में सर्वत्र विराजमान साधकगण की अन्त:ज्योति प्रज्ज्वलित करने वाली हैं।

अज्ञानहारिणीअन्तरूप्रज्ञासरसायिनी।
विद्येश्वरी ज्ञानदिव्यज्योति: प्रदायिनी।।२९।।
अन्वय - विद्येश्वरी अज्ञान हारिणी अन्त: प्रज्ञा सरसायिनी दिव्य ज्ञान ज्योति: प्रदायिनी।
अर्थ - विद्येश्वरी ;सरस्वती अज्ञान हरने वाली, अन्त: प्रज्ञा सरसाने वाली दिव्य ज्ञान ज्योति प्रदान करने वालीहैं।

मनोमालिन्यहारिणी बाधाविघ्रनिवारिणी।
जगज्जननी विधात्री सच्चिदानन्दस्वरुपिणी।।३०।।
अन्वय - विधात्री, जगत जननी मन: मालिन्य हारिणी विघ्र बाधा निवारिणी, सच्चिदानन्द ;सत्चित्आनन्द स्वरूपिणी।
अर्थ - विधात्री ;सरस्वती जगत जननी मन की मलीनता हरने वाली,  विघ्र बाधा निवारण करने वाली, सच्चिदानन्द स्वरूपिणी हैं।

सदाचरणप्रदात्री अम्बिके! वीणापाणि!।
कर्तृत्वमहाहंकार-बोध-निवारिणी।।३१।।
अन्वय - अम्बिके! वीणापाणि! सदाचरण प्रदात्री, कर्तृत्वम् अहंकार बोध निवारिणी।
अर्थ - माँ वीणापाणि ;सरस्वतीद्ध सदाचरण प्रदात्री कत्र्तापन के अहंकार बोध का निवारण करती हैं।

सारसकलवेदशास्त्र.दिव्यज्ञानप्रदायिनी।
सर्वज्ञानमयी शारदा सर्वदा मोक्षदायिनी।।३२।।
अन्वय - शारदा सर्वज्ञानमयी सकल वेदशास्त्र.सार दिव्य ज्ञान प्रदायिनी सर्वदा मोक्षदायिनी।
अर्थ - शारदा सर्वज्ञानमयी सम्पूर्ण वेद शास्त्र का सार दिव्य ज्ञान प्रदायिनी सर्वदा मोक्षदायिनी हैं।

ह्रींकारी ब्रह्माणी त्रैलोक्यविमोहिनी।
महाभागे! दिव्यस्वरूप.सकलजनमोहनी।।३३।।
अन्वय - महाभागे! ह्रींकारी ब्रह्माणी दिव्यस्वरूप सकल जन मोहनी त्रैलोक्य विमोहिनी।
अर्थ - महाभागे ;सरस्वती ह्रींकारी, ब्रह्माणी, दिव्यस्वरूप सकल जन मोहनी त्रैलोक्य विमोहिनी है।

सरस्वती सर्वसुखसौभाग्यसरसायिनी।
आत्मानन्द-महानन्द-ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी।।३४।।
अन्वय - सरस्वती सर्व सुख सौभाग्य सरसायिनी आत्मानन्द महानन्द ब्रह्मानन्द प्रदायिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती सभी प्रकार के सुख.सौभाग्य सरसाने वाली आत्मानन्द, महानन्द, ब्रह्मानन्द प्रदायिनी हैं।

अखिल.ब्रह्माण्ड.सुरजनमुनिमनोविमोहिनी।
अम्बिके! शारदे! आरूढा दिव्यश्वेतकमलासने।।३५।।
अन्वय - अम्बिके! शारदे! दिव्यश्वेतकमलासने आरूढ़ा, अखिल.ब्रह्माण्ड.सुरजन मुनि मन विमोहिनी।
अर्थ - माँ शारदा दिव्य श्वेत कमल आसन पर आरूढ़ अखिल ;सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सुरजन व मुनिमन को मोहित करती है।

सरस्वती सर्वशक्तिमती श्रीरखिलेश्वरी।
देवलोके सर्वलोके सुरनरपूजिता देवेश्वरी।।३६।।
अन्वय - सरस्वती सर्वशक्तिमती श्री: अखिलेश्वरी देवेश्वरी देवलोके सर्वलोके सुर नर पूजिता ।
अर्थ - माँ सरस्वती सर्वशक्तिमती श्री अखिलेश्वरी देवेश्वरी देवलोक सर्वलोक में सुर नर पूजिता हैं।

सात्त्विकमनोभावे विराजमाना विज्ञानेश्वरी।
शुद्धसरलचित्तभक्तिभावे प्रसन्ना सिद्धेश्वरी।।३७।।
अन्वय - सिद्धेश्वरी विज्ञानेश्वरी सात्त्विक मनोभावे विराजमाना शुद्ध सरल चित्त भक्ति भावे प्रसन्ना।
अर्थ - सिद्धेश्वरी, विज्ञानेश्वरी ;सरस्वतीद्सात्त्विक मनोभाव में विराजमान, शुद्ध सरल चित्त की भक्ति भाव से प्रसन्न रहती हैं।

ब्रह्मज्ञानी देवर्षिनारदमहामुनिपूजिता।
ह्रींबीजमहामंत्र-अंतर्मन-सर्वदा सेविता।।३८।।
अन्वय - ब्रह्मज्ञानी महामुनि देवर्षि नारद पूजिता ह्रीं बीज महामंत्र अंतर्मन-सर्वदा सेवितो।
अर्थ - माँ सरस्वती, महामुनि ब्रह्मज्ञानी देवर्षि नारद जिनका अन्तर्मन सर्वदा ह्रीं बीज मंत्र से सेवित हैं। अर्थात् उनका चित्त सरस्वतीमय है, के द्वारा पूजित हैं।

सर्वदा विद्यमान.सत्कर्म.सङ्गे! मा शारदे!।
मातृसरस्वति विद्यावति भगवती वरदे!।।३९।।
अन्वय .-शारदे! मातृसरस्वति विद्यावति भगवती सर्वदा सत्कर्म.सङ्गे विद्यमान वरदे।
अर्थ -  माँ शारदा विद्यावति भगवती सर्वदा सत्कर्म-सङ्ग विद्यमान रहकर वर प्रदान करने वाली महादेवी हैं। अर्थात् सर्वदा अम्बिके सरस्वती सत्कर्म का संरक्षण करने वाली हैं।

ऋतंभराप्रज्ञाप्रदीप्ता शारदे! महाप्रज्ञेश्वरी।
सर्वकाले सर्वलोके महिमा सुशोभितायुगेश्वरी।।४०।।
अन्वय .-शारदे! महा प्रज्ञेश्वरी सर्वकाले सर्वलोके महिमा सुशोभिता युगेश्वरी ऋतंभरा प्रज्ञा प्रदीप्ता।
अर्थ - महादेवी सरस्वती महा प्रज्ञेश्वरी, सर्वकाल, सर्वलोक में महिमा से सुशोभित युगेश्वरी ऋतंभरा प्रज्ञा से प्रदीप्त हैं।

सत्यपक्षनिरूपिणी सर्वदा सतोगुणप्रदायिनी।
मात: सत्या सरस्वती शाश्वती सनातनी।।४१।।
अन्वय - मात: सरस्वती सत्या, शाश्वती, सनातनी सर्वदा सतोगुणप्रदायिनी सत्य-पक्ष निरूपिणी।
अर्थ - माँ सरस्वती, सत्य, शाश्वत, सनातन हैं, वह सब कुछ देने वाली, सतोगुण प्रदायिनी और सत्य पक्ष निरूपिणी हैं।

महिमा-अगम्या शास्त्रमयी शास्त्रेश्वरी।
सकल-पापानि विनश्यन्ति मातृ-ह्रींकारेश्वरी।।४२।।
अन्वय .- मातृ.ह्रींकारेश्वरी शास्त्रमयी शास्त्रेश्वरी महिमा.अगम्या सकल-पापानि विनश्यन्ति।
अर्थ - मातृ-ह्रींकारेश्वरी, शास्त्रमयी, शास्त्रेश्वरी ;सरस्वती जिनकी महिमा का सम्पूर्ण वर्णन नहीं किया जा सकता, समस्त पापों का विनाश करती हैं।

करूणावतारी करूणाकरी करूणेश्वरी।
सर्वमन्त्रग्रन्थसारप्रदात्री ग्रन्थेश्वरी।।४३।।
अन्वय - करूणावतारी करूणाकरी करूणेश्वरी ग्रन्थेश्वरी सर्वमन्त्रग्रन्थसार प्रदात्री।
अर्थ - माँ सरस्वती करूणावतारी, करूणाकरी, करूणेश्वरी, ग्रन्थेश्वरी सर्वमन्त्र ग्रन्थ-सार प्रदान करने वाली हैं।

शुभदा अम्बे! शारदे! त्वं महाकरूणामयी।
कल्याणकारिणी कल्याणी कल्याणमयी।।४४।।
अन्वय - अम्बे! शारदे! त्वं महाकरूणामयी कल्याणमयी कल्याणकारिणी कल्याणी शुभदा।
अर्थ - माँ शारदा आप महाकरूणामयी कल्याणमयी कल्याणकारिणी कल्याणी कल्याणमयी शुभ देने वाली हैं।

सदाचार-सद्भक्ति-सद्विचार-सरसायिनी।
सद्गुरु-पदपङ्कजहृदयसुधारसप्रवाहिनी।।४५।।
अन्वय - सदाचार.सद्भक्ति.सद्विचार-सरसायिनी सद्गुरु.पद पङ्कज हृदय सुधारस प्रवाहिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती सदाचार, सात्विक भक्ति, सद्विचार प्रकट करने वाली, सदगुरु के कमलवत चरण में अनुराग उत्पन्न कराने वाली हृदय में सुधारस का प्रवाह करने वाली हैं।

प्रकाशमयी परमहंस स्वरूप प्रदायिनी।
साधकानां सर्वेषां दिव्यज्ञान-प्रदायिनी।।४६।।
अन्वय - प्रकाशमयी परमहंस स्वरूप प्रदायिनी साधकानां सर्वेषां दिव्यज्ञान-प्रदायिनी।
अर्थ - प्रकाशमयी ;सरस्वती परमहंस स्वरूप बोध कराने वाली सभी साधकों को दिव्य ज्ञान प्रदाय करने वालीहै।

ब्रह्मतत्त्वनिरूपिणी ब्रह्मज्ञानेश्वरी।
ब्रह्मनाद प्रदर्शिता ब्रह्मनादेश्वरी।।४७।।
अन्वय - ब्रह्मतत्त्व निरूपिणी ब्रह्मज्ञानेश्वरी ब्रह्मनाद प्रदर्शिता ब्रह्मनादेश्वरी।
अर्थ - माँ ब्रह्मनादेश्वरी ;सरस्वतीद्धब्रह्मज्ञानेश्वरी ब्रह्मतत्त्व का  निरूपण करने वाली और ब्रह्मनाद का बोध कराने वाली हैं।

छन्दोरूपिणी मन्त्ररूपिणी काव्यकौशलदायिनी।
अक्षरेश्वरी आत्मबल बुद्धिबलं च प्रदायिनी।।४८।
अन्वय - अक्षरेश्वरी छन्द: रूपिणी मन्त्ररूपिणी काव्य कौशल दायिनी आत्मबलं बुद्धिबलं च प्रदायिनी।
अर्थ .- अक्षरेश्वरी ;सरस्वती छन्द रूपिणी, मन्त्ररूपिणी काव्य.कौशल देने वाली, आत्मबल और बुद्धिबल प्रदान करने वाली हैं।

सद्ज्ञानप्रदात्री सरस्वती कुबुद्धिनाशिनी।
अन्तर्तमाच्छन्नसकलदुर्गुणनिवारिणी।।४९।।
अन्वय - सरस्वती अन्त: तम: आच्छन्न सकल दुर्गुण निवारिणी कुबुद्धिनाशिनी सद्ज्ञानप्रदात्री।
अर्थ - माँ सरस्वती तम ;अन्धकार से आच्छन्न ; ढँका हुआ अन्तरूकरण के सकल ;समस्तद्ध दुर्गुण को दूर कर कुबुद्धि का नाश करती हैं और सद्ज्ञान प्रदान करती हैं।

सद्ज्ञानेश्वरी दिव्यज्ञानामृतप्रदायिनी।
सन्मार्गेश्वरी स्थितप्रज्ञस्थितिप्रदायिनी।।५०।।
अन्वय - सद्ज्ञानेश्वरी, सन्मार्गेश्वरी, दिव्यज्ञान अमृत प्रदायिनी  स्थितप्रज्ञ स्थिति प्रदायिनी।
अर्थ - सद्ज्ञानेश्वरी, सन्मार्गेश्वरी ;सरस्वती दिव्यज्ञान रूपी अमृत प्रदान करने वाली व स्थितप्रज्ञ की स्थिति प्रदान करने वाली हैं।

Saturday, February 26, 2011

सरस्‍वती शतकम् भाग 1

सरस्वती-शतकम् 

संस्‍कृत गीति‍काव्‍य
श्‍लोक क्रमांक 1 से 25
शास्त्र-वेदज्ञानवती श्रुतिमयी वेदवती।
त्वं महातत्त्वप्रदर्शिता नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।१।।
अन्वय - त्वं शास्त्र.वेद ज्ञानवती वेदवती श्रुतिमयी महातत्त्व प्रदर्शिता सरस्वति! तुभ्यं नम:।
अर्थ - आप शास्त्र और वेदों के ज्ञान से युक्त स्वयं वेद व श्रुतिमयी परम तत्त्व को प्रकट करने वाली हो,
हे माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

असत्यपक्षविच्छेदिनी सर्वपापखण्डखण्डिनी।
सतोगुणाच्छादिता नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।२।।
अन्वय - असत्य पक्ष विच्छेदिनी सर्वपाखण्ड खण्डिनी सतोगुण आच्छादिता सरस्वती! तुभ्यं नम:।
अर्थ - असत्य पक्ष का नाश करने वाली, सभी प्रकार के पाखण्ड ;छल, छद्म, दिखावों का खण्डन करने वाली सतोगुण से आच्छादित माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

सरस्वती शुभावहा अंतरसुरप्रभञ्जिनीं।
सर्वशास्त्रछन्दोमयी नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।३।।

अन्वय - सरस्वती शुभ आवहा अंत: असुर प्रभञ्जिनीं, सर्व शास्त्र छन्दोमयी सरस्वति! तुभ्यं नम:।
अर्थ - हे, शुभ पर विराजमान, अन्तकरण के आसुरी प्रवृत्तियों का नाश करने वाली, सभी शास्त्रों के छन्दों से ओतप्रोत माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

सर्वभूतवासिनी, आसुरीदर्पनाशिनी।
परम-सुख-प्रदायिनी नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।४।।
अन्वय - सर्व भूत वासिनी, आसुरी दर्प नाशिनी, परम सुख प्रदायिनी सरस्वति! तुभ्यं नम:।
अर्थ - हे सभी जीवों में निवास करने वाली, आसुरी अभिमान का नाश करने वाली, परम आनंद को प्रदान करने वाली माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

शारदे ! महात्ममयी योगमार्गनिदर्शिनी।
काम-लिप्सा-ध्वंसिनी नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।५।।

अन्वय - महात्ममयी योग-मार्ग निदर्शिनी शारदे, काम-लिप्सा-ध्वंसिनी सरस्वति! तुभ्यं नम:।
अर्थ - हे महिमामयी योग के मार्ग को दिखलाने वाली माँ शारदे, कामलिप्सा वाली प्रवृत्ति को ध्वंस -समाप्तद्, करने वाली माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

प्रसुप्तचक्रोद्दीपिनी भोग.जाल विमोचिनी।
वाचा प्रज्ञामण्डिता नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।६।।
अन्वय - प्रसुप्त चक्र उद्दीपिनी भोग.जाल विमोचिनी, वाचा प्रज्ञा मण्डिता सरस्वति! तुभ्यं नम:।
अर्थ - मानव में प्रसुप्त , सोये हुए, सातों चक्रों को जगाने वाली, विषय भोग की आसक्ति से छुटकारा दिलाने वाली, वाणी की शक्ति, प्रज्ञा से सुशोभित माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

तत्त्वज्ञानविमर्शनी चित्तभ्रमनिवारिणी।
आत्मबोधनिरूपिता नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।७।।

अन्वय - तत्त्व-ज्ञान-विमर्शनी, चित्त.भ्रम.निवारिणी, आत्म.बोध.निरूपिता सरस्वति! तुभ्यं नम:।
अर्थ - हे तत्त्वज्ञान कराने वाली, चित्त के भ्रम को दूर करने वाली, आत्म स्वरूप को दिखलाने वाली, माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

महादेवी सुधाकरी शुभाकरी ब्रह्मकारी।
गुणाकारी मंङ्गलाकारी नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।८।।
अन्वय - महादेवी सुधाकरी , सुधाकरीद्, शुभ आकरी ब्रह्मकारी,  गुण आकरी मंङ्गल आकरी सरस्वति!
तुभ्यं नम:।
अर्थ - हे महादेवी, अमृत की भण्डार, शुभ.कोष वाली ब्रह्म स्वरुपिणी गुणों की भण्डार, मंङ्गलमयी माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

आरोग्यक्षेमसंबद्र्धिनी सर्वसिद्धिकारिणी।
सर्वाभीष्टदायिनी नमस्तुभ्यं सरस्वति!।।९।।
अन्वय - आरोग्य क्षेम संबद्र्धिनी सर्व सिद्धिकारिणी, सर्व अभीष्टदायिनी सरस्वति! तुभ्यं नम:।
अर्थ - आरोग्य क्षेम का संवर्धन करने वाली, सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली, सभी अभीष्ट को प्रदान करने वाली, हे माँ सरस्वती! आपको नमस्कार है।

वरदायनी प्रज्ञाप्रखरप्रदायिनी।
वागीश्वरी महाविज्ञानप्रदायिनी ।।१०।।
अन्वय - सरस्वती, वरदायनी प्रखर प्रज्ञा प्रदायिनी, वागीश्वरी महा विज्ञान प्रदायिनी।
अर्थ- माँ सरस्वती वरदायिनी हैं, प्रखर प्रज्ञा प्रदान करने वाली हैं, वाणीश्वरी सरस्वती महाविज्ञान प्रदान करने वाली हैं।

विद्याधीश्वरी भगवती वीणावादिनी।
ब्रह्मप्रिया वरदा ब्रह्मलोकनिवासिनी।।११।।
अन्वय - विद्याधीश्वरी वीणावादिनी भगवती वरदा ब्रह्मप्रिया ब्रह्मलोकनिवासिनी।
अर्थ - विद्याधीश्वरी वीणावादिनी भगवती ;माँ सरस्वती, ब्रह्मप्रिया ब्रह्मलोक में निवास करने वाली व अभिष्ट वर देने वाली हैं।

जगदीश्वरी निर्विकारी ब्रह्मस्वरुपिणी।
ब्रह्मवादिनी शारदा विद्यास्वरुपिणी।।१२।।
अन्वय - जगद् ईश्वरी शारदा निर्विकारी विद्यास्वरुपिणी ब्रह्मस्वरुपिणी ब्रह्मवादिनी।
अर्थ - जगदीश्वरी शारदा ; माँ सरस्वती निर्विकारी विद्यास्वरुपिणी ब्रह्मस्वरुपिणी और ब्रह्मवादिनी हैं।

विद्याधिष्ठात्री महादेवी हंसवाहिनी।
चैतन्यरुपिणी दुर्दान्तदुर्बुद्धिनाशिनी।।१३।।
अन्वय - महादेवी हंसवाहिनी विद्याधिष्ठात्री, चैतन्यरुपिणी दुर्दान्त दुर्बुद्धिनाशिनी।
अर्थ - महादेवी हंसवाहिनी ;सरस्वती, विद्याधिष्ठात्री चैतन्यरुपिणी दुर्दान्त दुर्बुद्धि को नष्ट करने वाली हैं।

परातत्त्वविवेचिनी अम्ब! विवेकप्रदायिनी।
मातेश्वरी सद्ज्ञानसदासरसायिनी।।१४।।
अन्वय - अम्ब! मातेश्वरी परातत्त्वविवेचिनी विवेक प्रदायिनी, सद्ज्ञान सरसायिनी।
अर्थ - मातेश्वरी ;माँ सरस्वती आप परातत्त्व की विवेचना करने वाली विवेक शक्ति प्रदान करने वाली सद्ज्ञान सरसाने वाली हैं।

निर्मला सर्वज्ञा त्रैलोक्य-सद्गतिदायिनी।
महामाये! शारदे! सद्बुद्धिसदासरसायिनी।।१५।।
अन्वय - महामाये! शारदे! निर्मला सर्वज्ञा त्रैलोक्य सद्गतिदायिनी सद्बुद्धि सरसायिनी।
अर्थ - महामाया शारदा ;सरस्वती, निर्मला, सर्वज्ञा, तीनों लोकों को सद्गति प्रदान करने वाली सद्बुद्धि देने वाली हैं।

सरस्वती विघ्नेश्वरी सर्वविघ्नविनाशिनी।
 ह्रींविद्या शारदे! ह्रींबीजमंत्ररुपिणी।।१६।।
अन्वय - शारदे! सरस्वती विघ्नेश्वरी सर्वविघ्नविनाशिनी ह्रीं विद्या ह्रीं बीज मंत्र रुपिणी।
अर्थ - माँ शारदा सरस्वती विघ्रेश्वरी सभी प्रकार के विघ्रों का विनाश करने वाली ह्रीं विद्या और ह्रीं बीज मंत्र रुपिणी है।

विशुद्धचैतन्यरुपिणी कर्तव्‍यपथप्रदायिनी।
परात्पराशक्तिपरमप्रकाशप्रदायिनी।।१७।।
अन्वय - विशुद्ध चैतन्य रुपिणी कर्तव्‍य पथ प्रदायिनीपरा.अपरा शक्ति परम प्रकाश प्रदायिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती विशुद्ध चैतन्य रुपिणी, कर्तव्‍य.पथ प्रदान करने वाली, परा अपरा शक्ति, परम प्रकाश प्रदान करने वाली हैं।

संसारसर्वविद्याविशारदपदप्रदायिनी।
शरणागतदयाभावसद्भावप्रदर्शिका।।१८।।
अन्वय - सरस्वती माँ संसार-सर्व विद्या विशारद पद प्रदायिनी शरणागत.दयाभावए सद्भाव प्रदर्शिका।
अर्थ - माँ सरस्वती, संसार की सभी विद्या में विशारद पद प्रदान करने वाली, शरणागत के प्रति दयाभाव सद्भाव प्रदर्शित करने वाली है।

सरस्वती संसारसारतत्त्वप्रदायिनी।
परमात्मनी पराविद्या महाबुद्धिविलासिनी।।१९।।
अन्वय - सरस्वती संसार: सारतत्त्वप्रदायिनी, परमात्मनी परा विद्या महाबुद्धि विलासिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती संसार को सार तत्त्व प्रदान करने वाली, परमात्मनी परा विद्या महाबुद्धिविलासिनी हैं।

प्रकाशवती पद्मासना परमेश्वरी।
मातेश्वरी विद्यां देहि सरस्वती बुद्धीश्वरी।।२०।।
अन्वय - प्रकाशवती, पद्मासना, परमेश्वरी, मातेश्वरी, बुद्धीश्वरी सरस्वती माँ विद्यां देहि।
अर्थ - प्रकाशवती, पद्मासना, परमेश्वरी, मातेश्वरी, बुद्धीश्वरी सरस्वती माँ विद्यां ;ज्ञान दो।

घनघोर-यमपाश-भयभूत-समूलनिवारिणी।
सांसारिक-झंझावात-संसारसागरतारिणी।।२१।।
अन्वय - घनघोर यम-पाश-भय-भूत-समूलनिवारिण सांसारिक झंझावात, संसार सागर तारिणी।
अर्थ - माँ सरस्वती, घनघोर यमपाश के भय रूपी भूत को समूल नष्ट करने वाली, सांसारिक झंझावात और संसार सागर से पार करने वाली है।

विशुद्ध.विद्यात्मा श्रीस्त्रैलोक्यविमोहिनी।
क्रूरकालकरालकलिकालजालविमुक्तिनी।।२२।।
अन्वय - विशुद्ध विद्यात्मा श्री: त्रैलोक्य विमोहिनी क्रूर काल कराल कलिकाल जाल विमुक्तिनी।
अर्थ - विशुद्ध विद्यात्मा, श्री ;लक्ष्मी तीनों लोक को मोहित करने वाली, क्रूर काल कराल कलिकाल जाल से विमुक्त करने वाली हैं।

संसार-अज्ञान घनघोर-तिमिर-विनाशिनी।
नीरक्षीरविवेकविवेच्यबुद्धिप्रदायिनी।।२३।।
अन्वय - संसार-अज्ञान घनघोर तिमिर विनाशिनी, नीर-क्षीर विवेक विवेच्य बुद्धि प्रदायिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती संसार के अज्ञान को घनघोर तिमिर ;अंधकार को मिटाने वाली, नीर-क्षीर विवेकी, विवेच्य बुद्धि को प्रदान करने वाली है।

भवसागरतारिणी महामोहनिवारिणी।
पराशक्ति परमानन्द परमपदप्रदायिनी।।२४।।
अन्वय - भवसागर तारिणी, महामोह-निवारिणी, पराशक्ति, परम आनन्द, परमपद प्रदायिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती भवसागर से तारने वाली, महामोह से छुटकारा दिलाने वाली, परा शक्ति, परम आनन्द और परम पद प्रदान करने वाली हैं।

पतितपावनी वाणी महापाप-विनाशिनी।
वीणाकरधारिणी वरदे! वरदहस्तदर्शायिनी।।२५।।
अन्वय - वाणी  सरस्वती पतितपावनी,  महापाप विनाशिनी, वीणाधारिणी वरदे! वरद हस्त दर्शायिनी।
अर्थ - वाणी ;सरस्वती पतितपावनी,  महापाप विनाशिनी, वीणाधारिणी, वरद हस्त दर्शाने वाली वरदायिनी हैं।




Tuesday, February 15, 2011

सरस्वती.पञ्चकम् व सरस्वत्यष्टकम्

सरस्वती पञ्चकम्   
परमात्मतत्त्वनिरूपिणीं नमामि वीणावादिनीम्।

आसुरीशक्तिनाशिनीमखिलजगदुद्धारिणीम्।
महाकालमभिनन्दितां नमामि वागधीश्वरीम्।।१।।
परमात्मतत्त्वनिरूपिणीं नमामि वीणावादिनीम्।

सरस्वतीं सुपावनीमखिलब्रह्माण्डसुवासिनीम्।
सात्विकवृत्तिसम्बद्र्धिनीं नमामि चित्ताकर्षिणीम्।।२।।
परमात्मतत्त्वनिरूपिणीं नमामि वीणावादिनीम्।

सकलदुर्गुणमोचनीं प्रशान्तभावदायिनीम्।
सर्वपापविमोचिनीं नमामि कष्टनिवारिणीम्।।३।।
परमात्मतत्त्वनिरूपिणीं नमामि वीणावादिनीम्।

आदिकविप्रेरितां वाल्मीकि.ऋषिपूजिताम्।
व्यासमहर्षिवन्दितां नमामि सत्योत्प्रेरिणीम्।।४।।
परमात्मतत्त्वनिरूपिणीं नमामि वीणावादिनीम्।

सरस्वतीं सुभावनीं सर्वलोकविमोहिनीम्।
अनन्तश्रीविभूषितां नमामि भवमोचिनीम्।।५।।
परमात्मतत्त्वनिरूपिणीं नमामि वीणावादिनीम्।

इति डॉबृजेशसिंहेन विरचितं सरस्वती.पञ्चकं सम्पूर्णतामगात्।

सरस्वत्यष्टकम्
भारतीं विश्‍वम्भरां प्रदीप्ताम्.ऋतम्भराम्।
निर्मलां चिदम्बरां नमामि मातृशारदाम्।।

अचलभक्तिदायिनीं महाभावप्रदायिनीम्।
सतोगुणीं मनोभावनीं विपुलवैभवदायिनीम्।।
सिद्धिदात्रीं सुखदां प्रज्ञाप्रदां शारदाम्।।१।।
भारतीं विश्‍वम्भरां .....................

मोहान्धकारहारिणीं सर्वशोकनिवारिणीम्।
विद्यानिधिं भयहारिणी वंदे पतितोद्धारिणीम्।
पुष्टिकरी सर्वज्ञां शास्त्रवेदविशारदाम्।।२।।
भारतीं विश्‍वम्भरां .....................

विधात्री ब्रह्मभावनीं शारदां पतितपावनीम्।
तपोनिधिं सुहासिनीं सरस्वतीं तपस्विनीम्।
तप:कलां विद्याप्रदां नौमि देवीं शारदाम्।।३।।
भारतीं विश्‍वम्भरां .....................

भ्रमजालविमुक्तिनीं सारतत्त्वनिरूपिणीम्।
त्रिदेवप्रेरणादायिनीं कत्तर्व्‍यपथ प्रदायिनीम्।।
ब्रह्मशिवहरिवन्दितां नमस्तुभ्यं शारदे! ।।४।।
भारतीं विश्‍वम्भरां .....................

शशिमुखीं पुष्टिकरीं सर्वभावेन तुष्टिकरीम्।
करूणाकरीं दयाकरीं सुखाकरीं कृपाकरीम्।।
सद्गुणाकरीमभयदां ज्ञानमयीं ज्ञानदाम्।।५।।
भारतीं विश्‍वम्भरां .....................

सकलसिद्धिधारिणीं सर्वसंतापहारिणीम्।
मनोविषादहारिणीं महामोहनिवारिणीम्।
भजामि देवीं शारदां बुद्धिप्रदां सर्वदा।।६।।
भारतीं विश्‍वम्भरां .....................

पापदोषमोचिनीमीश्वरीं कमललोचनाम्।
विशालाक्षि! भवमोचिनीं सकलस़ृष्टिविमोहिनीम्।
सिद्धिदात्रीं मोक्षदां नित्याभिनन्दितां शारदाम्।।७।।
भारतीं विश्‍वम्भरां .....................

महाभागे बुद्धीश्वरि सरस्वति वाणीश्वरि!।
ज्ञानमयि परमेश्वरि जयं देहि अखिलेश्वरि!।।
कोटिवन्दिते वाग्दे वरदहस्तमहाप्रदे!।।८।।
भारतीं विश्‍वम्भरां .....................


Thursday, February 10, 2011

सरस्वती.स्तवन व मुक्‍तक

सरस्वती स्तवन्

व्यष्टि से समष्टि ओर चेतना विस्तार दे।
प्रज्ञा प्रखर करो जयति मातृ शारदे।।

मनोभाव: शुद्ध स्वच्छ, कर विमुक्त अंतर्द्वन्द्व।
मनोद्गार हो प्रशस्त, हो तरंगित स्वछन्द।।
क्षुद्र बुद्धि विनष्ट कर, उद्यात भाव विस्तार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

जीव शिव एक तत्व, साधना का सारतत्व।
सोऽहं ब्रह्मतत्व मनीषि जन परम लक्ष्य।।
अहम् ब्रह्मास्मि तत्व ज्ञान, साधक मन विस्तार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................,

अम्बिके दयाकरी, देवत्य भाव दायिनी।
सरस्वती सुभावनी, आत्मबोध सरसायिनी।।
नीर क्षीर विवेच्च बुद्धि मानव मन विस्तार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

भू भुव: जन: तप: सत्यादि सप्त लोक जान।
मनुष्य तन.मन.जान, सकल सृष्टि विराजमान।।
पिण्ड ब्रह्माण्ड एक तत्व, अद्वैत भाव विचार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

सरस्वती चरणारविन्द सौभाग्य शान्तिपुंज।
भक्ताभीष्ट परिपूरिणी, सद्ज्ञान प्रकाशपुंज।।
पतित पावनी अम्ब, पतितों को तार दे।।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

विज्ञान कोश उदीप्तिनी, आनंदकोश प्रदीप्तिनी।
अष्टांग योग सरसायिनी, निर्लिप्त भाव दायिनी।।
आत्मतत्व उदीप्त कर, तमसासुर जार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

विद्याप्रदा शारदा, यशप्रदा सर्वदा।
पतितपावनी शारदा, तपोबला जयप्रदा।।
सद्ज्ञान प्रदान कर, अज्ञानासुर मार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

प्रज्ञादात्री वेदवती, जयति अम्ब सरस्वती।
आत्मज्ञान प्रदात्री, नमस्तुभ्यं सरस्वती।।
भवसागर तारदे, जयति मातृ शारदे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

महाभाव प्रदर्शिनी, निष्काम कर्मोत्प्रेरिणी।
भवबंधन विमुक्तिनी, नमामि सिद्धयोगिनी।।
सारतत्व प्रदान कर, निसार विचार जार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

अतीन्द्रिय शक्ति वर्द्धनी, जीवनीशक्ति उदीप्तिनी।
विद्याकरी उज्जवला, निर्विकार भावदायिनी।।
अम्ब वीणावादिनी, ओंकार तत्व सार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

अदम्य भोगजारिणी, निर्लिप्त भाव प्रदीप्तिनी।
संत सानिध्य प्रदायिनी, अंतश्चेतन विस्तारिणी।।
वाचा हंसवाहिनी, आत्म साक्षात्कार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

निर्मला श्वेताम्बरा निश्छल मनोभावनी।
साधना पथ प्रशस्तिनी, तुष्टि पुष्टि दायिनी।।
क्लीं श्रीं बीज सार दे, ब्रह्मतत्व हींकार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................



मुक्तक

कृपा बिना न कोई यश पाता है।
सुख सन्मति सकल दूर हट जाता है।
सरस्वती अनुकंपा अभाव में मनुज,
धन होते भी सम्मान को तरसता है।

सृष्टि स्थिति और संहार कराते हैं।
प्रेरणा से सकल ब्रह्माण्ड चलाते हैं।
अखिल विश्व पथ प्रदर्शक सरस्वती,
ब्रह्मा, विष्णु, शिव सदा गुण गाते हैं।

साहित्य साधना सफल करो सरस्वती।
ज्ञान विज्ञान कोश प्रखर करो सरस्वती।
बृजेश चरण.शरण सदा मिलता रहे,
तन अंतर्मन प्रकाशमय करो सरस्वती।

अनगढ़ मन प्रेरणा पाकर गीत गाये हैं।
वीणापाणि कृपा मनोभाव जगाये हैं।
मात शारदे के चरण कमल पर,
बृजेश कुछ मुक्ताहार चढ़ाये हैं।

हृदय मुक्तक संसार सजाये हैं।
सम्मुख उभर मनोद्गार आये हैं।
बृजेश माँ शारदे पद पंकज पर,
भाव पुष्प सविनय चढ़ाये हैं।


Monday, February 7, 2011

सरस्‍वती वंदना

बसंत पंचमी के अवसर पर आरंभ कि‍ये जा रहे इस ब्‍लाग की शुरूवात डा.ब़जेश सि‍ह रचि‍त सरस्‍वती वंदना के साथ...........
सरस्वती वंदना 1

हे! जगजननी मातु शारदे,
मन कर्म वचन में माँ बस जाओ।

अंतज्योति प्रदीप्त करो माँ,
अंत: प्रज्ञा जननी जगाओ।
हम अति अबोध अज्ञानी याचक,
मन बीच ज्ञान प्रकाश दिखाओ।।
हे! जगजननी .....................

सद्ज्ञान मिले हम दिव्य बनें,
परम प्रकाश उजास कराओ।
वरदायिनी हो मातु शारदे,
वरदहस्त माँ तुम दर्शाओ।।
हे! जगजननी .....................

वीणावादिनी हे! शारदे,
विद्या विवेक और बुद्धि जगाओ।
मैं बुद्धिहीन तिमिरग्रस्त माते,
मन में ज्ञान की ज्योति जलाओ।।
हे! जगजननी .....................

नित अंतर अंधकार हरो माँ,
मन के तिमिर.त्रय.ताप मिटाओ।
मातु हृदय में हर पल रहना,
मन अंतर तुम रच.बस जाओ।।
हे! जगजननी .....................


सरस्वती वंदना 2
वीणावादिनी हे! मातु शारदे।
अज्ञान तिमिर समूल मिटाओ।

पावन स्वर दो माँ अधरों को।
भाव मिले अंतर लहरों को।
सरस्वती सद् वि‍चार सरसाओ। वीणावादिनी .....................

दिव्य भाव मिले अंतर्मन को।
सुवासित करो तन.मन को।
ईर्ष्‍या द्वेष चित्त भाव मिटाओ। वीणावादिनी .....................

दीन दुखियों के मीत बने।
मानवता मन प्रीत बने।
मानवीय भाव मर्मज्ञ बनाओ। वीणावादिनी .....................

जीवन लक्ष्य जनहित बने।
परम उद्देश्य परहित बने।
परदुख कातर भाव उमगाओ। वीणावादिनी .....................

अंतरहृदय भाव उद् गाता।
स्वर की देवी विद्या माता।
अंत: मन उद् गार सरसाओ। वीणावादिनी .....................

सात सुरों की लय प्रदाता।
मातृ कृपा यशमान बढ़ाता।
यशस्वी विभूतिमान बनाओ। वीणावादिनी .....................

मुक्ति दिलाओ लोभ फंदों से।
हो विमुक्त मन अंतर.द्वन्द्वों से।
अंतर कषाय कल्मषता मिटाओ। वीणावादिनी .....................

निर्लिप्त करो मोह के धंधों से।
संलिप्त करो मन अंतर छंदों से।
इच्छाशक्ति मम प्रबल बनाओ। वीणावादिनी .....................

सरस्वती कृपा प्रेरणा दिलाये।
पथ.प्रदर्शक बन राह दिखाये।



गुरु गहन मन तम को हरते।
अंतर समूल अज्ञान दूर करते।
सद् गुरु चरण में नेह लगाओ। वीणावादिनी .....................

निगुरा जीवन नाहक गंवाय।
मनुज गुरु बिन ज्ञान न पाय।
सद् गुरु समर्थ सान्निध्य दिलाओ।वीणावादिनी .....................

अंतर गुरु होत अति बलवान।
विकसित करते मनीषी सुजान।
अंतर गुरुत्व उद्दीप्त कराओ। वीणावादिनी .....................

अंतर गुरु की गरिमा अपार। विकसित अनुपम शक्ति आगार।
आत्म गुरुत्व महान जगाओ। वीणावादिनी .....................

हृदय भक्ति सरस भरूँ मैं।
सतत् वंदना तेरी करूँ मैं।
भक्ति सुधामय चित्त बनाओ। वीणावादिनी .....................

भाव निर्मल मन में धरूँ मैं।
भक्ति निर्झरणी सा झरूँ मैं।
रसाकर मम हृदय बनाओ।वीणावादिनी .....................