Friday, September 30, 2011

ग़ज़ल- बैठे हैं बेबस अपने ही हाथों

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता





बैठे हैं बेबस अपने ही हाथों अपना चमन उजार के।
जी सकते थे बेहतर मगर जिए जैसे-तैसे दिन गुजार के।

‘बृजेश’ दुनिया को सीख देने की फितरत रही हमारी,
मगर बैठे अपने ही मसलों में हम हिम्मत हार के।

न वे समझ सके हमको, न हम उनको समझा सके,
हालात से मजबूर वो भी, बैठे हम भी बैठे थक हार के।

है साथ रहने की जरूरत दोनों को बराबर, मगर
अफसोस साथ निभाया जबरिया मन मार के।

रो धो के शिकवा गिला में दिन रात बस कटते गये,
‘बृजेश’ आया बुलावा चल दिए उपर यूँ हाथ पसार के।

Wednesday, September 28, 2011

ग़ज़ल- मेरी चाहतों को मेरी मजबूरियाँ......

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता




मेरी चाहतों को मेरी मजबूरियाँ समझ बैठे हैं वो,
किसी के शराफत को कमजोरियाँ समझ बैठे हैं वो।

गलबहियाँ औरों से और अपनों से कटते रहे,
अपनी कमियों को अपनी मजबूतियाँ समझ बैठे हैं वो।

कौन अपना कौन पराया समझ आई न अब तक
अपनी नासमझी को अपनी होशियारियाँ समझ बैठे हैं वो।

उनकी सलामती के खातिर दुनिया से लड़ते रहा हरदम
मेरे इस संघर्ष को मेरी दुश्वारियाँ समझ बैठे हैं वो।

न रही एहसान जताने की फितरत हमारी ‘बृजेश’
मेरी इस आदत को दिल की दूरियाँ समझ बैठे हैं वो।

Monday, September 19, 2011

ग़ज़ल - सर का ताज बनाये बैठे बेदिली की बानगी को....

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता



सर का ताज बनाये बैठे बेदिली की बानगी को।
हमने सर माथे रखा नायाब अपनी पसंदगी को।


पाक मुहब्बत को अपने सजदा किया था हमने,
मगर शर्मिन्दगी समझ बैठे वो मेरी बन्दगी को।

खेल के सामान से अलहदा न समझे मेरे दिल को,
फकत अदना खिलौना ही समझे मेरी जिन्दगी को।

कैसे बेबस लाचार हम, न कर सके इजहार हम,
अपनी पसंदगी को, अपनी नापसंदगी को।

जुल्मो सितम उनका मगर खुद को दोषी बताते रहे,
हैं खुद हैरान हम देख अपनी इस दीवानगी को।

अपनी बेगुनाही पे तरस खाई न हमने ‘बृजेश’
खुद ही थे मुंसिफ और सजा सुना दी खुदी को।

Friday, September 16, 2011

ग़ज़ल- व्‍यक्‍ति‍ के व्‍यक्‍ि‍तत्‍व का.....

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता




व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंदाजा होता उसकी तहजीब से,
जीवन की फसल उपजती है संकल्पों के बीज से।

जो जैसा सोचता वैसा ही वो बन जाता अक्सर,
शुभ या अशुभ कर्म निकलते हैं विचारों के दहलीज से।

किसी समय का कर्म भाग्य में तबदील होता सब जानते,
नाहक गिला शिकवा होता आदमी को अपने नसीब से।

आदमी नजरअंदाज भले कर देता इसे अक्सर मगर,
जमीर सवाल करता है हरदम अमीर से गरीब से।

दुनिया को सुधारने की कवायद में लगा रहता ‘बृजेश’
न देखना चाहता है आदमी खुद को करीब से।