ग़ज़ल
रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्ण कुमार साहू
तबला वादक - कन्हैया श्रीवास
गिटार - रवि गुप्ता
न जरूरी ये हरदम कि कर भला तो भला होता है,
कभी होम करते भी किसी का हाथ जला होता है।
इन्सान की जिन्दगी भी क्या अजब शै होती,
सुकून की मस्ती तो कभी दर्द का जलजला होता है।
कई रिश्तों की अगन में झुलस जाता आदमी,
फूँककर भी छांछ पीता जो दूध का जला होता है।
मेहनत ही कामयाबी का सूत्र होता नहीं हर बार,
कर्म और भाग्य में अक्सर मुकाबला होता है।
‘बृजेश’ साथ देकर भी अपनों से चोट खाते कभी,
कौन जाने कब क्या किसी के दिल में पला होता है।
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