सरस्वती-शतकम्
संस्कृत गीतिकाव्य
श्लोक क्रमांक 26 से 50 तक
दैहिकदैविकभौतिकसकलतापत्रयहारिणीम्।
नमामि शारदां सर्वानन्दमङ्गलकारिणीम्।।२६।।
अन्वय - दैहिकदैविक भौतिक सकल ताप त्रय हारिणीम् सर्व आनन्द मङ्गल कारिणीम् शारदां नमामि।
अर्थ - दैहिक, दैविक, भौतिक तीनों प्रकार के समस्त ताप हरने वाली सर्व मङ्गल व आनन्द प्रदायिनी माँ शारदा को मैं नमस्कार करता हूँ।
विद्योत्तमा दिव्यब्रह्मविद्याप्रदायिनी।
विश्वेश्वरी-अंतस्तलसघनतिमिरविनाशिनी।।२७।।
अन्वय - ;माँ सरस्वती, विद्योत्तमा विश्वेश्वरी अंतस्तल सघन तिमिर विनाशिनी दिव्य ब्रह्म विद्या प्रदायिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती विश्वेश्वरी विद्योत्तमा, अंतस्तल के सघन तिमिर ;अन्धकार को समाप्त करने वाली ब्रह्म विद्या प्रदान करने वाली हैं।
सर्व-प्राणिषु सर्वत्र विराजमाना शुभ्रेश्वरी।
साधकानामन्र्तज्र्योतिरूप्रदीप्ता मातेश्वरी।।२८।।
अन्वय - सर्व प्राणिषु सर्वत्र विराजमाना, शुभ्रेश्वरी, मातेश्वरी साधकानाम् अन्त: ज्योति: प्रदीप्ता।
अर्थ - मातेश्वरी, शुभ्रेश्वरी ;सरस्वती सभी प्राणियों में सर्वत्र विराजमान साधकगण की अन्त:ज्योति प्रज्ज्वलित करने वाली हैं।
अज्ञानहारिणीअन्तरूप्रज्ञासरसायिनी।
विद्येश्वरी ज्ञानदिव्यज्योति: प्रदायिनी।।२९।।
अन्वय - विद्येश्वरी अज्ञान हारिणी अन्त: प्रज्ञा सरसायिनी दिव्य ज्ञान ज्योति: प्रदायिनी।
अर्थ - विद्येश्वरी ;सरस्वती अज्ञान हरने वाली, अन्त: प्रज्ञा सरसाने वाली दिव्य ज्ञान ज्योति प्रदान करने वालीहैं।
मनोमालिन्यहारिणी बाधाविघ्रनिवारिणी।
जगज्जननी विधात्री सच्चिदानन्दस्वरुपिणी।।३०।।
अन्वय - विधात्री, जगत जननी मन: मालिन्य हारिणी विघ्र बाधा निवारिणी, सच्चिदानन्द ;सत्चित्आनन्द स्वरूपिणी।
अर्थ - विधात्री ;सरस्वती जगत जननी मन की मलीनता हरने वाली, विघ्र बाधा निवारण करने वाली, सच्चिदानन्द स्वरूपिणी हैं।
सदाचरणप्रदात्री अम्बिके! वीणापाणि!।
कर्तृत्वमहाहंकार-बोध-निवारिणी।।३१।।
अन्वय - अम्बिके! वीणापाणि! सदाचरण प्रदात्री, कर्तृत्वम् अहंकार बोध निवारिणी।
अर्थ - माँ वीणापाणि ;सरस्वतीद्ध सदाचरण प्रदात्री कत्र्तापन के अहंकार बोध का निवारण करती हैं।
सारसकलवेदशास्त्र.दिव्यज्ञानप्रदायिनी।
सर्वज्ञानमयी शारदा सर्वदा मोक्षदायिनी।।३२।।
अन्वय - शारदा सर्वज्ञानमयी सकल वेदशास्त्र.सार दिव्य ज्ञान प्रदायिनी सर्वदा मोक्षदायिनी।
अर्थ - शारदा सर्वज्ञानमयी सम्पूर्ण वेद शास्त्र का सार दिव्य ज्ञान प्रदायिनी सर्वदा मोक्षदायिनी हैं।
ह्रींकारी ब्रह्माणी त्रैलोक्यविमोहिनी।
महाभागे! दिव्यस्वरूप.सकलजनमोहनी।।३३।।
अन्वय - महाभागे! ह्रींकारी ब्रह्माणी दिव्यस्वरूप सकल जन मोहनी त्रैलोक्य विमोहिनी।
अर्थ - महाभागे ;सरस्वती ह्रींकारी, ब्रह्माणी, दिव्यस्वरूप सकल जन मोहनी त्रैलोक्य विमोहिनी है।
सरस्वती सर्वसुखसौभाग्यसरसायिनी।
आत्मानन्द-महानन्द-ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी।।३४।।
अन्वय - सरस्वती सर्व सुख सौभाग्य सरसायिनी आत्मानन्द महानन्द ब्रह्मानन्द प्रदायिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती सभी प्रकार के सुख.सौभाग्य सरसाने वाली आत्मानन्द, महानन्द, ब्रह्मानन्द प्रदायिनी हैं।
अखिल.ब्रह्माण्ड.सुरजनमुनिमनोविमोहिनी।
अम्बिके! शारदे! आरूढा दिव्यश्वेतकमलासने।।३५।।
अन्वय - अम्बिके! शारदे! दिव्यश्वेतकमलासने आरूढ़ा, अखिल.ब्रह्माण्ड.सुरजन मुनि मन विमोहिनी।
अर्थ - माँ शारदा दिव्य श्वेत कमल आसन पर आरूढ़ अखिल ;सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सुरजन व मुनिमन को मोहित करती है।
सरस्वती सर्वशक्तिमती श्रीरखिलेश्वरी।
देवलोके सर्वलोके सुरनरपूजिता देवेश्वरी।।३६।।
अन्वय - सरस्वती सर्वशक्तिमती श्री: अखिलेश्वरी देवेश्वरी देवलोके सर्वलोके सुर नर पूजिता ।
अर्थ - माँ सरस्वती सर्वशक्तिमती श्री अखिलेश्वरी देवेश्वरी देवलोक सर्वलोक में सुर नर पूजिता हैं।
सात्त्विकमनोभावे विराजमाना विज्ञानेश्वरी।
शुद्धसरलचित्तभक्तिभावे प्रसन्ना सिद्धेश्वरी।।३७।।
अन्वय - सिद्धेश्वरी विज्ञानेश्वरी सात्त्विक मनोभावे विराजमाना शुद्ध सरल चित्त भक्ति भावे प्रसन्ना।
अर्थ - सिद्धेश्वरी, विज्ञानेश्वरी ;सरस्वतीद्सात्त्विक मनोभाव में विराजमान, शुद्ध सरल चित्त की भक्ति भाव से प्रसन्न रहती हैं।
ब्रह्मज्ञानी देवर्षिनारदमहामुनिपूजिता।
ह्रींबीजमहामंत्र-अंतर्मन-सर्वदा सेविता।।३८।।
अन्वय - ब्रह्मज्ञानी महामुनि देवर्षि नारद पूजिता ह्रीं बीज महामंत्र अंतर्मन-सर्वदा सेवितो।
अर्थ - माँ सरस्वती, महामुनि ब्रह्मज्ञानी देवर्षि नारद जिनका अन्तर्मन सर्वदा ह्रीं बीज मंत्र से सेवित हैं। अर्थात् उनका चित्त सरस्वतीमय है, के द्वारा पूजित हैं।
सर्वदा विद्यमान.सत्कर्म.सङ्गे! मा शारदे!।
मातृसरस्वति विद्यावति भगवती वरदे!।।३९।।
अन्वय .-शारदे! मातृसरस्वति विद्यावति भगवती सर्वदा सत्कर्म.सङ्गे विद्यमान वरदे।
अर्थ - माँ शारदा विद्यावति भगवती सर्वदा सत्कर्म-सङ्ग विद्यमान रहकर वर प्रदान करने वाली महादेवी हैं। अर्थात् सर्वदा अम्बिके सरस्वती सत्कर्म का संरक्षण करने वाली हैं।
ऋतंभराप्रज्ञाप्रदीप्ता शारदे! महाप्रज्ञेश्वरी।
सर्वकाले सर्वलोके महिमा सुशोभितायुगेश्वरी।।४०।।
अन्वय .-शारदे! महा प्रज्ञेश्वरी सर्वकाले सर्वलोके महिमा सुशोभिता युगेश्वरी ऋतंभरा प्रज्ञा प्रदीप्ता।
अर्थ - महादेवी सरस्वती महा प्रज्ञेश्वरी, सर्वकाल, सर्वलोक में महिमा से सुशोभित युगेश्वरी ऋतंभरा प्रज्ञा से प्रदीप्त हैं।
सत्यपक्षनिरूपिणी सर्वदा सतोगुणप्रदायिनी।
मात: सत्या सरस्वती शाश्वती सनातनी।।४१।।
अन्वय - मात: सरस्वती सत्या, शाश्वती, सनातनी सर्वदा सतोगुणप्रदायिनी सत्य-पक्ष निरूपिणी।
अर्थ - माँ सरस्वती, सत्य, शाश्वत, सनातन हैं, वह सब कुछ देने वाली, सतोगुण प्रदायिनी और सत्य पक्ष निरूपिणी हैं।
महिमा-अगम्या शास्त्रमयी शास्त्रेश्वरी।
सकल-पापानि विनश्यन्ति मातृ-ह्रींकारेश्वरी।।४२।।
अन्वय .- मातृ.ह्रींकारेश्वरी शास्त्रमयी शास्त्रेश्वरी महिमा.अगम्या सकल-पापानि विनश्यन्ति।
अर्थ - मातृ-ह्रींकारेश्वरी, शास्त्रमयी, शास्त्रेश्वरी ;सरस्वती जिनकी महिमा का सम्पूर्ण वर्णन नहीं किया जा सकता, समस्त पापों का विनाश करती हैं।
करूणावतारी करूणाकरी करूणेश्वरी।
सर्वमन्त्रग्रन्थसारप्रदात्री ग्रन्थेश्वरी।।४३।।
अन्वय - करूणावतारी करूणाकरी करूणेश्वरी ग्रन्थेश्वरी सर्वमन्त्रग्रन्थसार प्रदात्री।
अर्थ - माँ सरस्वती करूणावतारी, करूणाकरी, करूणेश्वरी, ग्रन्थेश्वरी सर्वमन्त्र ग्रन्थ-सार प्रदान करने वाली हैं।
शुभदा अम्बे! शारदे! त्वं महाकरूणामयी।
कल्याणकारिणी कल्याणी कल्याणमयी।।४४।।
अन्वय - अम्बे! शारदे! त्वं महाकरूणामयी कल्याणमयी कल्याणकारिणी कल्याणी शुभदा।
अर्थ - माँ शारदा आप महाकरूणामयी कल्याणमयी कल्याणकारिणी कल्याणी कल्याणमयी शुभ देने वाली हैं।
सदाचार-सद्भक्ति-सद्विचार-सरसायिनी।
सद्गुरु-पदपङ्कजहृदयसुधारसप्रवाहिनी।।४५।।
अन्वय - सदाचार.सद्भक्ति.सद्विचार-सरसायिनी सद्गुरु.पद पङ्कज हृदय सुधारस प्रवाहिनी।
अर्थ - माँ सरस्वती सदाचार, सात्विक भक्ति, सद्विचार प्रकट करने वाली, सदगुरु के कमलवत चरण में अनुराग उत्पन्न कराने वाली हृदय में सुधारस का प्रवाह करने वाली हैं।
प्रकाशमयी परमहंस स्वरूप प्रदायिनी।
साधकानां सर्वेषां दिव्यज्ञान-प्रदायिनी।।४६।।
अन्वय - प्रकाशमयी परमहंस स्वरूप प्रदायिनी साधकानां सर्वेषां दिव्यज्ञान-प्रदायिनी।
अर्थ - प्रकाशमयी ;सरस्वती परमहंस स्वरूप बोध कराने वाली सभी साधकों को दिव्य ज्ञान प्रदाय करने वालीहै।
ब्रह्मतत्त्वनिरूपिणी ब्रह्मज्ञानेश्वरी।
ब्रह्मनाद प्रदर्शिता ब्रह्मनादेश्वरी।।४७।।
अन्वय - ब्रह्मतत्त्व निरूपिणी ब्रह्मज्ञानेश्वरी ब्रह्मनाद प्रदर्शिता ब्रह्मनादेश्वरी।
अर्थ - माँ ब्रह्मनादेश्वरी ;सरस्वतीद्धब्रह्मज्ञानेश्वरी ब्रह्मतत्त्व का निरूपण करने वाली और ब्रह्मनाद का बोध कराने वाली हैं।
छन्दोरूपिणी मन्त्ररूपिणी काव्यकौशलदायिनी।
अक्षरेश्वरी आत्मबल बुद्धिबलं च प्रदायिनी।।४८।।
अन्वय - अक्षरेश्वरी छन्द: रूपिणी मन्त्ररूपिणी काव्य कौशल दायिनी आत्मबलं बुद्धिबलं च प्रदायिनी।
अर्थ .- अक्षरेश्वरी ;सरस्वती छन्द रूपिणी, मन्त्ररूपिणी काव्य.कौशल देने वाली, आत्मबल और बुद्धिबल प्रदान करने वाली हैं।
सद्ज्ञानप्रदात्री सरस्वती कुबुद्धिनाशिनी।
अन्तर्तमाच्छन्नसकलदुर्गुणनिवारिणी।।४९।।
अन्वय - सरस्वती अन्त: तम: आच्छन्न सकल दुर्गुण निवारिणी कुबुद्धिनाशिनी सद्ज्ञानप्रदात्री।
अर्थ - माँ सरस्वती तम ;अन्धकार से आच्छन्न ; ढँका हुआ अन्तरूकरण के सकल ;समस्तद्ध दुर्गुण को दूर कर कुबुद्धि का नाश करती हैं और सद्ज्ञान प्रदान करती हैं।
सद्ज्ञानेश्वरी दिव्यज्ञानामृतप्रदायिनी।
सन्मार्गेश्वरी स्थितप्रज्ञस्थितिप्रदायिनी।।५०।।
अन्वय - सद्ज्ञानेश्वरी, सन्मार्गेश्वरी, दिव्यज्ञान अमृत प्रदायिनी स्थितप्रज्ञ स्थिति प्रदायिनी।
अर्थ - सद्ज्ञानेश्वरी, सन्मार्गेश्वरी ;सरस्वती दिव्यज्ञान रूपी अमृत प्रदान करने वाली व स्थितप्रज्ञ की स्थिति प्रदान करने वाली हैं।
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