Thursday, February 10, 2011

सरस्वती.स्तवन व मुक्‍तक

सरस्वती स्तवन्

व्यष्टि से समष्टि ओर चेतना विस्तार दे।
प्रज्ञा प्रखर करो जयति मातृ शारदे।।

मनोभाव: शुद्ध स्वच्छ, कर विमुक्त अंतर्द्वन्द्व।
मनोद्गार हो प्रशस्त, हो तरंगित स्वछन्द।।
क्षुद्र बुद्धि विनष्ट कर, उद्यात भाव विस्तार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

जीव शिव एक तत्व, साधना का सारतत्व।
सोऽहं ब्रह्मतत्व मनीषि जन परम लक्ष्य।।
अहम् ब्रह्मास्मि तत्व ज्ञान, साधक मन विस्तार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................,

अम्बिके दयाकरी, देवत्य भाव दायिनी।
सरस्वती सुभावनी, आत्मबोध सरसायिनी।।
नीर क्षीर विवेच्च बुद्धि मानव मन विस्तार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

भू भुव: जन: तप: सत्यादि सप्त लोक जान।
मनुष्य तन.मन.जान, सकल सृष्टि विराजमान।।
पिण्ड ब्रह्माण्ड एक तत्व, अद्वैत भाव विचार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

सरस्वती चरणारविन्द सौभाग्य शान्तिपुंज।
भक्ताभीष्ट परिपूरिणी, सद्ज्ञान प्रकाशपुंज।।
पतित पावनी अम्ब, पतितों को तार दे।।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

विज्ञान कोश उदीप्तिनी, आनंदकोश प्रदीप्तिनी।
अष्टांग योग सरसायिनी, निर्लिप्त भाव दायिनी।।
आत्मतत्व उदीप्त कर, तमसासुर जार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

विद्याप्रदा शारदा, यशप्रदा सर्वदा।
पतितपावनी शारदा, तपोबला जयप्रदा।।
सद्ज्ञान प्रदान कर, अज्ञानासुर मार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

प्रज्ञादात्री वेदवती, जयति अम्ब सरस्वती।
आत्मज्ञान प्रदात्री, नमस्तुभ्यं सरस्वती।।
भवसागर तारदे, जयति मातृ शारदे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

महाभाव प्रदर्शिनी, निष्काम कर्मोत्प्रेरिणी।
भवबंधन विमुक्तिनी, नमामि सिद्धयोगिनी।।
सारतत्व प्रदान कर, निसार विचार जार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

अतीन्द्रिय शक्ति वर्द्धनी, जीवनीशक्ति उदीप्तिनी।
विद्याकरी उज्जवला, निर्विकार भावदायिनी।।
अम्ब वीणावादिनी, ओंकार तत्व सार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

अदम्य भोगजारिणी, निर्लिप्त भाव प्रदीप्तिनी।
संत सानिध्य प्रदायिनी, अंतश्चेतन विस्तारिणी।।
वाचा हंसवाहिनी, आत्म साक्षात्कार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................

निर्मला श्वेताम्बरा निश्छल मनोभावनी।
साधना पथ प्रशस्तिनी, तुष्टि पुष्टि दायिनी।।
क्लीं श्रीं बीज सार दे, ब्रह्मतत्व हींकार दे।
व्यष्टि से समष्टि .......................................



मुक्तक

कृपा बिना न कोई यश पाता है।
सुख सन्मति सकल दूर हट जाता है।
सरस्वती अनुकंपा अभाव में मनुज,
धन होते भी सम्मान को तरसता है।

सृष्टि स्थिति और संहार कराते हैं।
प्रेरणा से सकल ब्रह्माण्ड चलाते हैं।
अखिल विश्व पथ प्रदर्शक सरस्वती,
ब्रह्मा, विष्णु, शिव सदा गुण गाते हैं।

साहित्य साधना सफल करो सरस्वती।
ज्ञान विज्ञान कोश प्रखर करो सरस्वती।
बृजेश चरण.शरण सदा मिलता रहे,
तन अंतर्मन प्रकाशमय करो सरस्वती।

अनगढ़ मन प्रेरणा पाकर गीत गाये हैं।
वीणापाणि कृपा मनोभाव जगाये हैं।
मात शारदे के चरण कमल पर,
बृजेश कुछ मुक्ताहार चढ़ाये हैं।

हृदय मुक्तक संसार सजाये हैं।
सम्मुख उभर मनोद्गार आये हैं।
बृजेश माँ शारदे पद पंकज पर,
भाव पुष्प सविनय चढ़ाये हैं।


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