Monday, February 7, 2011

सरस्‍वती वंदना

बसंत पंचमी के अवसर पर आरंभ कि‍ये जा रहे इस ब्‍लाग की शुरूवात डा.ब़जेश सि‍ह रचि‍त सरस्‍वती वंदना के साथ...........
सरस्वती वंदना 1

हे! जगजननी मातु शारदे,
मन कर्म वचन में माँ बस जाओ।

अंतज्योति प्रदीप्त करो माँ,
अंत: प्रज्ञा जननी जगाओ।
हम अति अबोध अज्ञानी याचक,
मन बीच ज्ञान प्रकाश दिखाओ।।
हे! जगजननी .....................

सद्ज्ञान मिले हम दिव्य बनें,
परम प्रकाश उजास कराओ।
वरदायिनी हो मातु शारदे,
वरदहस्त माँ तुम दर्शाओ।।
हे! जगजननी .....................

वीणावादिनी हे! शारदे,
विद्या विवेक और बुद्धि जगाओ।
मैं बुद्धिहीन तिमिरग्रस्त माते,
मन में ज्ञान की ज्योति जलाओ।।
हे! जगजननी .....................

नित अंतर अंधकार हरो माँ,
मन के तिमिर.त्रय.ताप मिटाओ।
मातु हृदय में हर पल रहना,
मन अंतर तुम रच.बस जाओ।।
हे! जगजननी .....................


सरस्वती वंदना 2
वीणावादिनी हे! मातु शारदे।
अज्ञान तिमिर समूल मिटाओ।

पावन स्वर दो माँ अधरों को।
भाव मिले अंतर लहरों को।
सरस्वती सद् वि‍चार सरसाओ। वीणावादिनी .....................

दिव्य भाव मिले अंतर्मन को।
सुवासित करो तन.मन को।
ईर्ष्‍या द्वेष चित्त भाव मिटाओ। वीणावादिनी .....................

दीन दुखियों के मीत बने।
मानवता मन प्रीत बने।
मानवीय भाव मर्मज्ञ बनाओ। वीणावादिनी .....................

जीवन लक्ष्य जनहित बने।
परम उद्देश्य परहित बने।
परदुख कातर भाव उमगाओ। वीणावादिनी .....................

अंतरहृदय भाव उद् गाता।
स्वर की देवी विद्या माता।
अंत: मन उद् गार सरसाओ। वीणावादिनी .....................

सात सुरों की लय प्रदाता।
मातृ कृपा यशमान बढ़ाता।
यशस्वी विभूतिमान बनाओ। वीणावादिनी .....................

मुक्ति दिलाओ लोभ फंदों से।
हो विमुक्त मन अंतर.द्वन्द्वों से।
अंतर कषाय कल्मषता मिटाओ। वीणावादिनी .....................

निर्लिप्त करो मोह के धंधों से।
संलिप्त करो मन अंतर छंदों से।
इच्छाशक्ति मम प्रबल बनाओ। वीणावादिनी .....................

सरस्वती कृपा प्रेरणा दिलाये।
पथ.प्रदर्शक बन राह दिखाये।



गुरु गहन मन तम को हरते।
अंतर समूल अज्ञान दूर करते।
सद् गुरु चरण में नेह लगाओ। वीणावादिनी .....................

निगुरा जीवन नाहक गंवाय।
मनुज गुरु बिन ज्ञान न पाय।
सद् गुरु समर्थ सान्निध्य दिलाओ।वीणावादिनी .....................

अंतर गुरु होत अति बलवान।
विकसित करते मनीषी सुजान।
अंतर गुरुत्व उद्दीप्त कराओ। वीणावादिनी .....................

अंतर गुरु की गरिमा अपार। विकसित अनुपम शक्ति आगार।
आत्म गुरुत्व महान जगाओ। वीणावादिनी .....................

हृदय भक्ति सरस भरूँ मैं।
सतत् वंदना तेरी करूँ मैं।
भक्ति सुधामय चित्त बनाओ। वीणावादिनी .....................

भाव निर्मल मन में धरूँ मैं।
भक्ति निर्झरणी सा झरूँ मैं।
रसाकर मम हृदय बनाओ।वीणावादिनी .....................


2 comments:

  1. मॉं वीणावादिनी को नमन सहित बसंत पंचमी की शुभकामनांए.

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  2. ... बगरो बसंत है.

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