Friday, April 8, 2011

समाधान (प्रलंब गजल) भाग 2

2000 शेरों से युक्‍त ग़ज़ल समाधान लि‍खी है डॉ;बृजेश सिंह ने जि‍सका नाम सबसे लंबी ग़ज़ल के रूप में शुमार कि‍या गया है....इसी ग़ज़ल के कुछ अंश शामि‍ल कि‍ये जा रहे हैं इस पोस्‍ट में.....

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५१६. कैसे हैं हुक्मरान अवाम पे तरस न खाना है।।
५१६. देश के हर नागरिक को कर्ज में डूबाना है।।
५१७. लिए कटोरा याचक बनकर भटक रहे हैं वो।
५१७. घुटनों के बल झुककर कैसे भी कर्ज पाना है।।
५१८. ब्याज जुड़ते देनदारियाँ बढ़ती ही जा रहीं।
५१८. अवाम के कंधों पर कर्ज का बोझ बढ़ाना है।।
५१९. उधार लेकर घी पीने की चर्वाक नीति की।
५१९. कहावत इन्हें आज चारितार्थ कराना है।।
५२०. आज का पैदा शिशु भी कर्ज में डूबा हुआ है।
५२०. आज नहीं तो कल मय ब्याज कर्ज चुकाना है।।
१०५
५२१. कभी गम में मर्माहत हो नैन डबडबाना है।।
५२१. कभी क्रोध के वशीभूत हो तमतमाना है।।
५२२. दुनिया एक रंगमंच उसके पात्र हैं हम सभी।
५२२. अपना किरदार यहाँ सबको ही निभाना है।।
५२३. कुदरत शिद्दत से लगा ही रहता, हरदम उसे।
५२३. फकत कभी पर्दा उठाना कभी पर्दा गिराना है।।
५२४. अनवरत् तैयारियों में संलग्र रहता है वो।
५२४. कुदरत को सूत्रधार उत्तरदायित्व निभाना है।।
५२५. चल रहीं हर तरफ तैयारियाँ तैयारियाँ।
५२५. कुदरत को तमाशा रात दिन दिखाना है।।
१०६
५२६. अपने अहंकार में न खुद को भरमाना है।।
५२६. कत्र्तापन के बोध से व्यक्तित्व गिराना है।।
५२७. असंख्य पटकथा लिखे जा रहे यहाँ पे हरदम।
५२७. इसकी तैयारी पूरी कि दृश्य फिल्माना है।।
५२८. कुदरत का ए नायाब खेल चलता ही रहता।
५२८. कोई नायक किसी को खलनायक बनाना है।।
५२९. नाट्य पात्रों का सीधे अभिनय चल रहा यहाँ।
५२९. दृश्यांतर होते यवनिका का उठ गिर जाना है।।
५३०. मदारियों सा अक्सर नियंत्रण डोर को थाम के।
५३०. उसे आदमी को नटखट मर्कट सा नचाना है।।
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५३१. कुदरत को क्या क्या न जाने रंगत दिखाना है।।
५३१. कभी के रंक को राजा का कुलदीप बन जाना है।।
५३२. किसी जन्म का दुश्मन घर में ही जन्मता।
५३२. क्या नायाब तरीके से बदला भंजाना है।।
५३३. कोई इस कदर दुश्वारियों का सबब बनता।
५३३. अपना बनकर अपनों को ही दुख पहुँचाना है।।
५३४. कोई अपना कभी नाकों चने चबाता है।
५३४. कई-कई तरीकों से अपनों को सताना है।।
५३५. हो सकता है कि कोई पिछला भँजा रहा हो।
५३५. फकत बेजा ही तोहमत किसी पे लगाना है।।
१०८
५३६. पहला नहीं कई बार का जाना आना है।।
५३६. बिना मिले कोई चेहरा लगे पहचाना है।।
५३७. हो सकता है कि पहले भी हम मिलें हों कभी।
५३७. गुत्थी उलझी हुई है, ए रहस्य अनजाना है।।
५३८. सात जन्मों की बात सच्ची है या कहानी।
५३८. हो सकता कि ये सातवे जन्म का ठिकाना है।।
५३९. इस पड़ाव से हम दोनों को जुदा होना है।।
५३९. मुझे और कहीं तुम्हें कहीं और जाना है।।
५४०. फिर कभी मिलन हो या नहीं न पता हमें।
५४०. इन्हीं लम्हों पे सदियों का प्यार लुटाना है।।
१०९
५४१. खंभे से नरसिंह को अवतरित हो जाना है।।
५४१. सूर को हाथ पकड़ उसे रास्ता दिखाना है।।
५४२. आदमी की आस्था में होती सघनता अगर।
५४२. पाषाण में भी परमेश्वर को उतर आना है।।
५४३. भक्ति की शक्ति बहुत बड़ी होती सब जानते।
५४३. भक्ति से किसी को आता घर मंदिर बनाना है।।
५४४. इबादत में दम अगर तो ईश्वर साथ चलता।
५४४. शरीर सबसे बड़ा परमेश्वर का ठिकाना है।।
५४५. आदमी के विश्वास में शक्ति बहुत बड़ी इसे।
५४५. बड़े-बड़े तूफानों के रूख को मोड़ाना है।।
११०
५४६. पसीने से पिघल धरती को अन्न उपजाना है।।
५४६. श्रमवीरों के श्रम से चमन चहचहाना है।।
५४७. अन्नदाता किसान मजदूर के उन्नयन से ही।
५४७. किसी राष्ट्र का समग्र उत्थान हो पाना है।।
५४८. पूँजीपतियों के हिसाब से ही अब तक चलाया।
५४८. अब किसान मजदूरों के हिसाब से चलाना है।।
५४९. भ्रष्टों मिलावटखोरों को बहुत दी अहमियत।
५४९. मेहनत की रोटी को अब मान दिलाना है।।
५५०. मेहनतकशों के समुचित सम्मान में 'बृजेशÓ।
५५०. राष्ट्र के विकास का परचम लहराना है।।
१११
५५१. कुदरत को कुछ न कुछ कमी सबमें उपजाना है।।
५५१. दुनिया में किसी को न दोषरहित हो पाना है।।
५५२. इसे समझना लाजिमी किसी आदरणीय का।
५५२. न हर कार्य फकत अनुकरणीय हो जाना है।।
५५३. किसी आदरणीय का हर कर्म अनुकरणीय मान।
५५३. खुद को अंधविश्वास जहालत में फँसाना है।।
५५४. बड़े बड़े आदरणियों को हमने देखा उनको।
५५४. दौलत की हवस में फकत खुद को गिराना है।।
५५५. उचित क्या अनुचित क्या यह जानना जरूरी।
५५५. विवेक की कसौटी पे सबको आजमाना है।।
११२
५५६. द्वैत पर अद्वैत पर नाहक रार मचाना है।।
५५६. साकार निराकार परस्पर न दुश्मन बनाना है।।
५५७. सगुण निगुण के दायरे में बाँधना हिमाकत।
५५७. मजहबों के द्वंद्व में जग को नरक हो जाना है।।
५५८. सृष्टि रचयिता एक है, कहने वालों को अक्सर।
५५८. मजहब की आँख की किरकिरी बन जाना है।।
५५९. मजहब के ठेकेदारों का मकसद एक ही लगता।
५५९. फकत उपर वाले के वजूद को सिमटाना है।।
५६०. असीम तो असीम सीमाओं में न बाँधों।
५६०. अपनी हदों में बाँधना हिमाकत कहाना है।।
११३
५६१. जन की श्रद्धा का इन्हें फायदा उठाना है।।
५६१. मजहब के नाम पे उल्लू सीधा कराना है।।
५६२. अपने स्वार्थों में लोग गिर जाते इस कदर।
५६२. खुद भटकना और दूसरों को भटकाना है।।
५६३. आज भगवान का दर दिखाते-दिखाते यहाँ।
५६३. फकत खुद को ही भगवान कहलवाना है।।
५६४. लोगों को भगवान का दर्शन करा न पाये।
५६४. अब खुद ही भगवान का स्वांग रचाना है।।
५६५. इन मजहब के ठेकेदारों का है खेल कैसा।
५६५. धन पे बिकों का निर्लिप्तता पाठ पढ़ाना है।।
११४
५६६. इंसान से इंसानियत को कंपकंपाना है।।
५६६. कुदरत को भी आता कैसे बदला भँजाना है।।
५६७. कभी ज्वालामुखी, कभी सुनामी जलजला।
५६७. फकत विभीषिकाओं से दुनिया को दहलाना है।।
५६८. बहुत हुआ, टूट पड़ा बाँध कुदरत के सब्र का।
५६८. उसे भी आखिर कब तक संयम रख पाना है।।
५६९. इंसां अपनी पे आ अक्सर हदों को लाँघता वो।
५६९. कभी कुदरत को भी अपनी पे उतर आना है।।
५७०. सीमाओं से बाहर जाने को आदमी मचलता।
५७०. 'बृजेश' अंतत: कुदरत को भी मचल जाना है।।
११५
५७१. वतनपरस्तों को एहसास कि मूल्य चुकाना है।।
५७१. स्वाधीनता को माना सबसे बड़ा खजाना है।।
५७२. स्वतंत्रता की देवी कभी कुर्बानी माँगती।
५७२. आजादी की मशाल को रक्त से जलाना है।।
५७३. मिटा दी जवानी मादरे वतन पे अपनी।
५७३. हँसते-हँसते फकत वतन पे जान लुटाना है।।
५७४. हर जुल्मोसितम को अपने सीने पे झेला।
५७४. वे सोचते भी न थे कि पीठ दिखाना है।।
५७५. शहीदों की शहादत पर गर्व हम सभी को।
५७५. कुर्बानियों को याद कर अश्क छलक जाना है।।
११६
५७६. कभी आसमाँ से सूरज को आग बरसाना है।।
५७६. कभी तूफानों को सर की छत उड़ाना है।।
५७७. हैरतों में डालता यह देखकर आज 'बृजेशÓ।
५७७. कुछ इस कदर कुदरत का मेहरबां हो जाना है।।
५७८. कहीं अतिवृष्टि कहीं अनावृष्टि का आलम।
५७८. इस तरह कुदरत को कहर आज बरपाना है।।
५७९. कभी सितारों की ऐसी स्थिति बन जाती।
५७९. रक्त प्यासों को फकत घमासान मचाना है।।
५८०. कुदरत की तूलिका से इस तरह हो रहा रेखांकन।
५८०. फकत संसार का आँगन लहू से सजाना है।।
११७
५८१. पृथ्वी ने दिया हमें सौगातों का खजाना है।।
५८१. आदमी की हरकतें फकत एहसान झुठलाना है।।
५८२. पृथ्वी प्रदत्त उपहारों में आकंठ डूबे हैं हम।
५८२. पर कुछ न कुछ तो धरती का कर्ज लौटाना है।।
५८३. धरती को जल कुछ वापस दे सकें अगर तो।
५८३. ये कृतघ्रता का बोझ कुछ सर से हटाना है।।
५८४. पीढिय़ाँ अदूरदर्शिता के लिए कोसेंगी।
५८४. सम्हल जाए अन्यथा भविष्य में पछताना है।।
५८५. धरा को जल्द जल वापस करें, अगर खुद को।
५८५. आगामी पीढिय़ों की नजरों में न गिराना है।।
११८
५८६. उनके इम्तिहान पे कितनों को जान गँवाना है।।
५८६. वो कातिल हैं या मिजाज आशिकाना है।।
५८७. एक ईशारे पे लोग अपनी जान गँवा देते।
५८७. किसी की निगाह इस कदर जालिमाना है।।
५८८. बार-बार जलता फिर भी मिलने को मचलता।
५८८. शमा की लौ पे खुदखुशी कर लेता परवाना है।।
५८९. तीखी चितवन पे जाने कितने मर मिटे फिर भी।
५८९. चितवन की धार बार-बार आजमाना है।।
५९०. माना मजबूरियों में किसी की बेवफाई।
५९०. पर उनका क्या जिनका ये शगल हो जाना है।।
११९
५९१. कैसे भी औलाद का जीवन बनाना है।।
५९१. अभावों में भी बूते से अधिक लगाना है।।
५९२. माँ-बाप की जिंदगी का एक ही होता मकसद।
५९२. संतान की राहों पे सुखों का पुष्प बिछाना है।।
५९३. माँ-बाप का खाँसना महफिल में खलल मानना।
५९३. बुढ़ापे की मजबूरियों पे न तरस खाना है।।
५९४. जिसने लोरी सुनाई, जीवन लगाया उनको।
५९४. दो पल की मीठी बातों के लिए तरसाना है।।
५९५. माँ-बाप संतानों के लिए देवता से कम नहीं।
५९५. उन्हें तपसी सा निज जीवन को तपाना है।।
१२०
५९६. कभी इसे आबेहयात से नहलाना है।।
५९६. कभी कालकूट हलाहल में डूबाना है।।
५९७. जिंदगी की बंदगी किस अल्फाज में करें।
५९७. जिंदगी का फलसफा समझ न आना है।।
५९८. अक्सर खैरख्वाह समझता इसको आदमी।
५९८. मगर चोट खाने पे उसको तिलमिलाना है।।
५९९. कभी खुशगवार लगती अपनी जिंदगी तो।
५९९. कभी दुश्वारियाँ लादकर दिल को दहलाना है।।
६००. 'बृजेश' जिंदगी की कोंख से अमृत और विष।
६००. फकत दोनों को यहाँ साथ ही साथ आना है।।
१२१
६०१. कभी जीते जी अपनी चिता को सजाना है।।
६०१. कभी खुद को गम के समंदर में डूबाना है।।
६०२. दर्द की दरिया में डूबना उतराना कभी।
६०२. जल विहिन मीन सा कभी तडफ़ड़ाना है।।
६०३. जीवन और कुछ नहीं दर्द का कारवाँ भर है।
६०३. आदमी को कभी जलते मरूथल में तपाना है।।
६०४. सत्कर्मों से इस कदर जिंदगी को विवश कर दें।
६०४. उसे फख्र हो कि दहलीज पे सर झुकाना है।।
६०५. कुछ ऐसा कर जायें हम यहाँ पर 'बृजेश'।
६०५. जिंदगी मजबूर हो जाये कि हुक्म बजाना है।।
१२२
६०६. जल आबेहयात इसे जीव में जीवन पहुँचाना है।।
६०६. संजीवनी इसे जीव को जीवन से मिलाना है।।
६०७. जल व पर्यावरण को खत्म करने की साजिश।
६०७. फकत आदमी के वजूद को मानो मिटाना है।।
६०८. जल के सानिध्य में पलती रही हैं सभ्यताएँ।
६०८. पानी को पीना पानी से ही नहाना है।।
६०९. जल से ही होता श्राद्ध जल से ही आचमन।
६०९. जल के बिना न धर्म कर्मकांड हो पाना है।।
६१०. वेद शास्त्र सब जोर देकर कहते 'बृजेश'।
६१०. जल से ही आई दुनिया, जल में ही समाना है।।
१२३
६११. जल की महत्ता शिद्दत से हर किसी ने माना है।।
६११. जल से ही सृष्टि में जीवन को आना है।।
६१२. गुणगान करे किन शब्दों में जल की महत्ता का।
६१२. जल से सृष्टि जल को प्रलय भी उपजाना है।।
६१३. जल को व्यर्थ ही बरबाद करते रहते हैं हम।
६१३. एक दिन ना मिले जल जलजला आ जाना है।।
६१४. तन के पंचमहाभूतों में प्रमुख होता है जल।
६१४. जलतत्त्व कमी से जीवन को नष्ट हो जाना है।।
६१५. प्रमुख आधार जल ही होता है जीवन का।
६१५. 'बृजेश' पानी से ही जीवन पनप पाना है।।
१२४
६१६. सहेजकर संरक्षित रखना न व्यर्थ गँवाना है।।
६१६. जल दुनिया का सबसे बड़ा खजाना है।।
६१७. जल से ही पेड़ पौधों को जीवन पाना।
६१७. 'बृजेश' खेतों में पहुँच इसे अन्न उपजाना है।।
६१८. देह या आँखों का हो पानी तो पानी है।
६१८. पानी बिन मनुज शरीर शव सा हो जाना है।।
६१९. जहाँ जल वहाँ रेलमपेल सी जिंदगी का जलवा।
६१९. जहाँ नहीं उसे फकत श्मशान ही गिनाना है।।
६२०. जल बिना धरती की कोख सूनी-सूनी।
६२०. मरूस्थल सा चमन पड़ा रहता वीराना है।।
१२५
६२१. जल के मोल को समझें न व्यर्थ बहाना है।।
६२१. जल के बिना ए जग जीव विहिन हो जाना है।।
६२२. बेशकीमती इस तोहफे को संभाले रहना।
६२२. कुदरत का दिया ये सबसे बड़ा नजराना है।।
६२३. जल को न समझो महज खेलने का सामान।
६२३. ईश्वर का प्रदत्त आबेहयात गाइबाना है।।
६२४. ऊपरवाले की रहमत की कोई हद होती नहीं।
६२४. उसकी रहमत पे, उसकी शान में गुनगुनाना है।।
६२५. जल खत्म हो अगर तो दुनिया का क्या होगा।
६२५. सोचने मात्र से ही शरीर को थरथराना है।।
१२६
६२६. पन्ने पन्ने पर लिखा कि इसको बचाना है।।
६२६. जल अपव्यय को शास्त्रों ने अपराध माना है।।
६२७. जल के प्रदोहन में विवेक की होती जरूरत।
६२७. जितनी जरूरत हो उतना ही प्रयोग लाना है।।
६२८. सारे संकटों से बढ़के जल का अभाव होता।
६२८. जल के बिना सकल जीवन खत्म हो जाना है।।
६२९. जल का दोहन करते रहे पर न वापस किया।
६२९. खर्चे तो कुबेर का भी खाली होता खजाना है।।
६३०. खाते में डालने की जरूरत न समझा आदमी।
६३०. ठान लिया कि केवल भुनाना ही भुनाना है।।
१२७
६३१. सौगात समझ जिसे तू खुशियाँ माना है।।
६३१. वो कुछ और नहीं फकत दुखों का खजाना है।।
६३२. कामना और वासना की इंतिहा जब होती।
६३२. जितना भी धंसों बस धंसते ही जाना है।।
६३३. दुश्वारियों से अक्सर दो चार होना होता।
६३३. हर कदम ख्वाबों का दुश्मन बना जमाना है।।
६३४. रखो तुम अपनी ख्वाईशों को छुपाकर हमेशा।
६३४. मन की मन ही रखना सपनों को टूट जाना है।।
६३५. कामयाबी की लालसा लिए हम घूमते मगर।
६३५. जाने कब मिल जाए असफलता का नजराना है।।
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६३६. संक्षिप्त पथ तलाशना खुद को गड्ढे गिराना है।।
६३६. बिन योग्यता का सम्मान खुद को ठगाना है।।
६३७. माना अंतिम लक्ष्य तू ही होती किसी की।
६३७. मगर पहले ही पाना खुद को उलझाना है।।
६३८. तुम तक पहुँचे मगर काबिलियत को पाकर।
६३८. पहले मिलना संभावनाओं को अटकाना है।।
६३९. ए शोहरत तुमसे बस एक ही गुजारिश मेरी।
६३९. रोकना नहीं मुझे दूर बहुत दूर जाना है।।
६४०. भ्रष्ट करती किसी को बिन साधना की सिद्धियाँ।
६४०. इसे न जाने कितनी प्रतिभाओं को भटकाना है।।
१२९
६४१. देखा कई को मुँहजोर की जिंदगी बिताना है।।
६४१. गिरकर कैसे भी सम्मान पदक हथियाना है।।
६४२. आत्मा की आवाज अनसुना कर चलते रहे।
६४२. अपनी प्रज्ञा पे मानो खुद ही गाज गिराना है।।
६४३. इल्म को हासिल करने साधना की जरूरत।
६४३. समय पूर्व के शिशु को न सही पनप पाना है।।
६४४. अपने जमीर से ही छुपते रहने की नियति।
६४४. फकत खुद के वजूद का मजाक उड़ाना है।।
६४५. उसे जाहिल ही मानना लाजिमी है 'बृजेश'।
६४५. बुलंदी पिछले चोर दरवाजे जिसे अपनाना है।।
१३०
६४६. याद आता उसका बुलबुल सा चहचहाना है।।
६४६. बिटिया बिदा करना दिल पे पत्थर रखाना है।।
६४७. बिटिया की बिदाई का गम ऐसा गहरा होता।
६४७. सावन-भादो सा नैनो को अश्क बरसाना है।।
६४८. माता पिता के जिगर का टुकड़ा है वो मगर।
६४८. उसे किसी और घर आँगन को सरसाना है।।
६४९. आज तक महकाती रही बाबुल के घर को।
६४९. सद्भाव सुगन्धि से अब सासुरे को महकाना है।।
६५०. पहले शादी की फिक्र मगर विदा होते ही।
६५०. माँ बाप का मुख किस कदर कुम्हलाना है।।
१३१
६५१. बुजुर्ग का दिन काटना जैसे भी मन बहलाना है।।
६५१. अक्सर नाती पोतों से गहरा हो जाता याराना है।।
६५२. बालपन से बुढ़ापे की यात्रा कुछ लम्बी मगर।
६५२. बुढ़ापे से सीधे ही बचपने में जाना है।।
६५३. भूले भटके मुंह से कुछ का कुछ निकल जाता।
६५३. परिजन कहते कि बुढ़ऊ का ए सठियाना है।।
६५४. एक तरफ जीवन का गहन अनुभव बाँटना।
६५४. दूसरी तरफ बात बेबात में चिड़चिड़ाना है।।
६५५. फिर जन्म लेकर बचपने में लौटना है इसलिए।
६५५. 'बृजेश' बुढ़ापे में मिजाज हो जाता बचकाना है।।
१३२
६५६. फितरत अवाम की खुशियों में आग लगाना है।।
६५६. फिर नीरों सा बेफिक्र हो बंशी बजाना है।।
६५७. हुक्मरानों की हरकतों से दिल दहलता।
६५७. फकत अवाम के अरमान पे पानी फिराना है।।
६५८. जनमन की सेवा शपथ ले खुद की सेवा कराना।
६५८. अपनी हरकत से इनको बाज नहीं आना है।।
६५९. आंकड़ों के खेल में महारत है हासिल इन्हें।
६५९. उपलब्धियाँ एक का दस आता गिनाना है।।
६६०. जो एक बार गिरे तो फिर गिरते ही चले गये।
६६०. तय नहीं कि किस हद तक खुद को गिराना है।।
१३३
६६१. सबसे बड़ी जीत अपनों को जीताना है।।
६६१. कोशिश अपनों के दामन खुशियाँ बरसाना है।।
६६२. हर खेल को न जीतने का ही मकसद चाहिए।
६६२. जीत से भी बढ़के जीत कभी खुद को हराना है।।
६६३. तर्क कुतर्क बलजोरियों से लोग अपनी मनवाते।
६६३. हम भी ढाने संयम का लोहा मनवाना है।।
६६४. जीवन को सुखी रखना तो जानना लाजिमी।
६६४. लम्हों की प्रभुता को प्रलंब पछताना है।।
६६५. बात ही बात में बात बिगड़ जाती इस कदर।
६६५. मुँह लड़ाना रिश्ते का जनाजा उठाना है।।
१३४
६६६. उनका काम जबरिया एहसान जताना है।।
६६६. शेखचिल्ली का उनको किरदार निभाना है।।
६६७. मुगालते में जी रहे अक्सर उनका है मानना।
६६७. मेरी सफलता उनके कदमों तले से जाना है।।
६६८. खुद की तारीफ करते न कभी थकते वो ऐसे।
६६८. अपने आप में मगन फकत गाल बजाना है।।
६६९. लग्गू झब्बुओं से घिरने की आदत उनकी।
६६९. कूप मंडूक सा इसी को दुनिया माना है।।
६७०. यहाँ अक्सर ऐसे मिलते हैं लोग जिनको।
६७०. चापलूसों से अपनी हैसियत अँकवाना है।।
१३५
६७१. जल में ही अंतर्निहित जीवन-तत्त्व माना है।।
६७१. प्रकृति प्रदत्त सबसे बड़ा जल ही खजाना है।।
६७२. सारी दुनिया ही इसके पीछे भाग रही है।
६७२. जल के जलवे से अचंभित सारा जमाना है।।
६७३. ऋषियों मनीषियों वैज्ञानिकों ने हरदम ही।
६७३. जल को सृष्टि के विकास का आधार माना है।।
६७४. मनीषी जलविज्ञानवेत्ता को प्रणम्य मानते।
६७४. अपने ज्ञान से जिन्हें जग को तृप्त कराना है।।
६७५. अंतर्मन से आज सबको संकल्प लेना है कि।
६७५. जल संरक्षण जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाना है।।
१३६
६७६. इस जिंदगी का न कोई मकसद बनाना है।।
६७६. यत्र तत्र विचरते अपना दिन बिताना है।।
६७७. चित्त चंचल मन भटकता ही रहता हरदम।
६७७. यहाँ की भुल भूलैयों में खुद को भटकाना है।।
६७८. संकल्पों की कोंख से सफलता उपजती सदा।
६७८. शिद्दत से जुटना है कामयाबी यदि पाना है।।
६७९. परिश्रम से कौन सी उपलब्धि हासिल न होती।
६७९. धरा गगन कर्मठता का नारा गुंजाना है।।
६८०. चतुर आदमी को जाना कहीं और था मगर।
६८०. आदमी की फितरत, कहीं और ही जाना है।।
१३७
६८१. सियासत का फर्ज समस्याओं को सुलझाना है।।
६८१. अवाम की उलझनों को न और बढ़ाना है।।
६८२. शपथ ली थी जन मन की हृदय से सेवा की।
६८२. सियासतदारों को चाहिए शिद्दत से निभाना है।।
६८३. आलोचनाओं से ही केवल बात बनती नहीं।
६८३. आज मसलों पे समुचित समाधान सुझाना है।।
६८४. हुक्मरानों की मनमानियाँ बढ़ती जा रही।
६८४. ए सब्र के पैमाने को मानों छलकाना है।।
६८५. दबे कुचले हक पे सामने खड़े हो जाते।
६८५. धैर्य के तटबंध का कभी यूँ टूट जाना है।।
१३८
६८६. आत्माएं सोई सत्य का नगाड़ा बजवाना है।।
६८६. अब भी चेत जाओ सबको समझाना है।।
६८७. सप्तर्षियों के सानिध्य अभाव में कितने ही।
६८७. रत्नाकारों को रत्नाकर ही रह जाना है।।
६८८. कुटुम्ब परिवार धन संपदा के हिस्सेदार।
६८८. दौलत के पाप पर न कतई हिस्सा बंटाना है।।
६८९. जितना जल्दी समझ लें उतना ही अच्छा।
६८९. फकत खुद के हिस्से सिर्फ पाप ही आना है।।
६९०. आज गली गली में सप्तर्षियों की जरूरत।
६९०. रत्नाकारों के सोये जमीरों को जगाना है।।
१३९
६९१. नतीजे को नहीं सिर्फ सिफर ही रह पाना है।।
६९१. मामले को इससे भी नीचे तक जाना है।।
६९२. जहाँ सुकर्म गर्व से कद बढ़ जाता किसी का।
६९२. वही घमंड का काम पतन के गर्क गिराना है।।
६९३. गर्व घमंड के दरमियाँ एक झीना सा परदा।
६९३. जरा सी चूक होते किरदार बदलाना है।।
६९४. अपनी किस्मत को न सँवार सके मगर।
६९४. भाग्य विधाता का किरदार निभाना है।।
६९५. सर्वशक्तिमान खुद को समझ लेता आदमी।
६९५. तब कुदरत का ठानना कि गरूर मिटाना है।।
१४०
६९६. सत्य की कसौटी का परीक्षण कराना है।।
६९६. किसी सत्य पे चलना दिल को दहलाना है।।
६९७. भले एक हरिश्चंद कसौटी पे खरा उतरा।
६९७. मगर अब सोचना भी मन को सिहराना है।।
६९८. स्वप्र के वचन की मान रखना दूर की बात।
६९८. आज वायदों से सरेआम पलट जाना है।।
६९९. कतई मुझे हैरतों में न डालता यह देख।
६९९. हरिश्चंदों की नस्ल का खात्मा हो जाना है।।
७००. अपने को दाव लगाना व्यक्तिगत मामला।
७००. पर क्या अच्छा परिवार की बलि चढ़ाना है।।
१४१
७०१. अपने परिवार पे जुल्मों का पर्वत ढहाना है।।
७०१. ऐसी सत्यवादिता से फकत मन को थर्राना है।।
७०२. स्वप्र का वायदा याद रहा मगर ताज्जुब।
७०२. सात फेरों के वचन का न याद रह पाना है।।
७०३. राष्ट्रहित में कितना भी बड़ा बलिदान कम।
७०३. विवेक की कसौटी पे सत्य को कसाना है।।
७०४. धर्मपत्नी के सम्मान की रक्षा न कर सके।
७०४. हरिश्चंदों को इस कदर मूल्य चुकाना है।।
७०५. खुद के धैर्य संयम की परीक्षा अच्छी बात होती।
७०५. मगर क्या अच्छा परिजनों को दाव लगाना है।।
१४२
७०६. कई प्रश्रों का उत्तर अनुत्तरित रह जाना है।।
७०६. असल भूल झुनझुनों पे खुद को बहलाना है।।
७०७. कौन हूँ! कहाँ से आया! क्या मकसद मेरा।
७०७. खोज के परिणाम को खुद को ही बताना है।।
७०८. दुनिया को खोजने की कवायद में लगे हम।
७०८. सबसे जरूरी पहले खुद को खोजवाना है।।
७०९. विचारों के पतवार बिन जीवन नैया खे रहे।
७०९. मकसद भूल ए खुद को लक्ष्य से भटकाना है।।
७१०. जीवन की सबसे बड़ी आराधना और साधना।
७१०. जीवन देवता को सतत् पूजना जगाना है।।
१४३
७११. पतन गर्क में समाना है, उबर न पाना है।।
७११. लाखों बेगुनाहों के कत्ल का फल पाना है।।
७१२. जेहादी फसादी आज जी का जंजाल बने।
७१२. भस्मासुरों को पालने का मूल्य चुकाना है।।
७१३. भारत को विनष्ट करने का मंसूबा पालते।
७१३. बना विश्व का सबसे बड़ा आतंक ठिकाना है।।
७१४. आमने सामने मैदान में मात खाई हरदम।
७१४. दहशतगर्दों के दम खुद को ऊपर बताना है।।
७१५. हमारे धैर्य को न कमजोरियाँ समझे वो।
७१५. कलहप्रिय पड़ोसी को शिद्दत से चेताना है।।
१४४
७१६. मूल्यांकन कसौटी पे खुद को कसाना है।।
७१६. क्या खोआ क्या पाया हिसाब लगाना है।।
७१७. खाना पीना मौज मस्ती अलावे क्या किये।
७१७. अपनी जिंदगी का सही औकात अंकवाना है।।
७१८. क्यों कौडिय़ों के मोल इसको हम बेच रहे।
७१८. बेशकीमत रत्न को ना यूँ ही लुटाना है।।
७१९. जीवन का एक-एक लम्हा होता कीमती।
७१९. जिंदगी जीने का पावन मकसद बनाना है।।
७२०. जो हो गया सो हो गया अब ठानना है कि।
७२०. बेशकीमत जिंदगी न नाहक गंवाना है।।
१४५
७२१. कुछ का काम षडय़ंत्रों का दुष्चक्र रचाना है।।
७२१. उनकी नीयत सदा सही राह से भटकाना है।।
७२२. जिंदगी में ऐसे लोग मिल जाते हैं अक्सर।
७२२. जिन्हें दोस्ती की आड़ पीठ छुरे धंसाना है।।
७२३. चिकनी चुपड़ी वालों पे रखना सतर्क नजर।
७२३. जरा सा चुकना कि अपने को ही छलाना है।।
७२४. साथ दिखने वाला न हरदम जरूरी होता की।
७२४. मकसद उसका सदा अपना साथ निभाना है।।
७२५. कई सहचर भी कामयाबी पे जलते हैं अक्सर।
७२५. गफलत पे खुद को षडय़ंत्र शिकार बनाना है।।
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७२६. आदिकाल से इसकी महत्ता को पहचाना है।।
७२६. पेड़ पौधों को देवस्वरूप में ही जाना है।।
७२७. पेड़ पौधे की महत्ता प्रतिपादित पन्ने पन्ने पे।
७२७. वेद पुराणों में इसे प्राणाधार माना है।।
७२८. वृक्षारोपण परम पुनीत मान शास्त्र का।
७२८. एक पेड़ दस पुत्रों सा हितकारी ठहराना है।।
७२९. अखबारों में फोटो छपे आज एक ही है लक्ष्य।
७२९. बस मुँह से पर्यावरण-पर्यावरण चिल्लाना है।।
७३०. पर्यावरण पर प्रतिपल सजग थे पूर्वज हमारे।
७३०. पेड़-पौधे से प्राणवायु प्रवाहित माना है।।
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७३१. ठाने पेड़ पौधों के जंगल को कटाना है।।
७३१. क्योंकि अब कांकरीट का जंगल उगाना है।।
७३२. तप रही धरती तप रहा आसमान आज।
७३२. इस अंध प्रगति का मूल्य सबको चुकाना है।।
७३३. जिसको देखो वही उजाडऩे में लगा हुआ।
७३३. आज महज नारा कि पर्यावरण को बचाना है।।
७३४. कई-कई संस्थायें ढोंग रचाती फिरती।
७३४. वृक्षारोपण पे सस्ती लोकप्रियता कमाना है।।
७३५. पेड़ों की महत्ता ज्ञान पूर्वजों को तभी तो।
७३५. माने कि बड़े पुण्य का काम पेड़ लगाना है।।
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७३६. उसे पता किस तरह हालात मुट्ठी में लाना है।।
७३६. सीना ताने खड़ा जो आत्मवीर कहाना है।।
७३७. कुदरत का इम्तिहान चलता ही रहता।
७३७. बवंडरों का काम आना और जाना है।।
७३८. हालात से मुकाबले का न किसी का हौसला।
७३८. एकमात्र हल सूझे कि आत्मघात अपनाना है।।
७३९. दुश्वारियों को सहता कोई नियति मानता।
७३९. किसी को यूँ जीने का मिल जाता बहाना है।।
७४०. परिस्थितियों से लडऩे का हौसला जो रखता।
७४०. उसकी मुट्ठी में तूफानों को भी समाना है।।
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७४१. अगर चाहत है कि आत्म सम्मान बचाना है।।
७४१. ठान लो कि सबसे पहले दौलत कमाना है।।
७४२. मशक्कत से योग्यता के दम पहुँच बुलंदी पे अगर।
७४२. शिखर बने रहना लोहे के चने चबाना है।।
७४३. आर्थिक अभाव में निश्चित कद बौना ही होता।
७४३. धर्नाजन को सबसे बड़ा इल्म मानता जमाना है।।
७४४. एडिय़ाँ घिसते जिंदगी सारी गुजर जायेगी।
७४४. इल्म की बदौलत कठिन पहचान बनाना है।।
७४५. किताबों की बातें किताबों में ही अच्छी।
७४५. अच्छाई से नहीं कद दौलत से नपाना है।।
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७४६. धन दौलत से कौन अघाया किसे अघाना है।।
७४६. फिर भी हैसियत दौलत से ही अँकाना है।।
७४७. ऊपर उठने की फितरत में नीचे गिरते ही गये।
७४७. तय करना होगा खुद को कहाँ तक ले जाना है।।
७४८. हवस किसी की पूरी होती नहीं कभी भी।
७४८. वासनाओं का काम पतन के गर्क गिराना है।।
७४९. तृष्णा खा जाती सदाचार इसका काम एक ही।
७४९. आदमी के जमीर को रसातल पहुँचाना है।।
७५०. सदाकत की विरासत सबसे बड़ी विरासत।
७५०. ए पीढिय़ों के वास्ते अनमोल खजाना है।।

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