भारतीय विकास संस्कृति साहित्य परिषद का राष्ट्र आह्वान गीत ..बलिया राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित..
"आहुति महाकाव्य '' से पञ्चचामर छंद.....
रचयिता : महाकवि डॉ. बृजेश सिंह
Varnik छन्द.16 वर्ण .लघु गुरू लघु गुरू...प्रारंभ लघु से व अंत गुरू
अकाल में सहेजना सुबन्धु! सद्विचार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को।।
सदैव व्यष्टि में भरा समष्टि दिव्य भाव हो|
मनुष्य का मनुष्य से कुटुंब सा लगाव हो|
स्वराष्ट्र के शुभोपयोग लेखनी सुधार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
कभी न भूलना महान वंश की परम्परा|
स्वराष्ट्र के लिए समग्र ज्ञान की ऋतम्भरा|
कुबुद्धि पंथ त्याग दो ग्रहो सुबुद्धि सार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
सुदिव्य वाग्विभूति से मनुष्यता बची रहे |
सरस्वती कृपा रहे सुपद्मजा रची रहे|
जलप्रवाह-सा प्रसन्न सभ्यता प्रसार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
विशिष्ट ज्ञान-पुंज का यहाँ सदैव मान हो|
स्वसंस्कृतिप्रचार का विशाल संविधान हो|
चरित्रवान व्यक्ति के गहो चरित्र सार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
अनन्त शक्तिवान लक्ष्य जीव का महान हो|
गहो कृपाण न्याय हेतु भारतीय मान हो|
प्रताप से रचो पवित्र राष्ट्र-कण्ठहार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।🙏
2
"आहुति महाकाव्य '' से पञ्चचामर छंद.....
रचयिता : राष्ट्रकवि डॉ. बृजेश सिंह
तजो मनोविकार को गहो स्वधर्म को सदा |
करो विचार नीति जो हरे हरेक आपदा||
मनुष्य का सुधार हो युगीन सद्-विचार हो|
समुच्च राजता समाज चेतना प्रसार हो||
विधर्म-राह जो चले वही विनष्ट हो सदा|
उसे मिले नहीं कभी विभूति भूति सम्पदा||
विकास पन्थ जो चले वही सुलक्ष्य को गहे|
समस्त जीव एक हों समस्त लाभ ही लहे ||
वरीयता कभी नहीं मिले नहीं यहाँ कृपाण को|
वरीयता मिले सदा ऋतम्भरा सुप्राण को||
"आहुति महाकाव्य '' से पञ्चचामर छंद.....
रचयिता : महाकवि डॉ. बृजेश सिंह
Varnik छन्द.16 वर्ण .लघु गुरू लघु गुरू...प्रारंभ लघु से व अंत गुरू
अकाल में सहेजना सुबन्धु! सद्विचार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को।।
सदैव व्यष्टि में भरा समष्टि दिव्य भाव हो|
मनुष्य का मनुष्य से कुटुंब सा लगाव हो|
स्वराष्ट्र के शुभोपयोग लेखनी सुधार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
कभी न भूलना महान वंश की परम्परा|
स्वराष्ट्र के लिए समग्र ज्ञान की ऋतम्भरा|
कुबुद्धि पंथ त्याग दो ग्रहो सुबुद्धि सार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
सुदिव्य वाग्विभूति से मनुष्यता बची रहे |
सरस्वती कृपा रहे सुपद्मजा रची रहे|
जलप्रवाह-सा प्रसन्न सभ्यता प्रसार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
विशिष्ट ज्ञान-पुंज का यहाँ सदैव मान हो|
स्वसंस्कृतिप्रचार का विशाल संविधान हो|
चरित्रवान व्यक्ति के गहो चरित्र सार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
अनन्त शक्तिवान लक्ष्य जीव का महान हो|
गहो कृपाण न्याय हेतु भारतीय मान हो|
प्रताप से रचो पवित्र राष्ट्र-कण्ठहार को|
रचो चरित्र जो करे सुतीक्ष्ण बुद्धि -धार को||
ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।🙏
2
"आहुति महाकाव्य '' से पञ्चचामर छंद.....
रचयिता : राष्ट्रकवि डॉ. बृजेश सिंह
तजो मनोविकार को गहो स्वधर्म को सदा |
करो विचार नीति जो हरे हरेक आपदा||
मनुष्य का सुधार हो युगीन सद्-विचार हो|
समुच्च राजता समाज चेतना प्रसार हो||
विधर्म-राह जो चले वही विनष्ट हो सदा|
उसे मिले नहीं कभी विभूति भूति सम्पदा||
विकास पन्थ जो चले वही सुलक्ष्य को गहे|
समस्त जीव एक हों समस्त लाभ ही लहे ||
वरीयता कभी नहीं मिले नहीं यहाँ कृपाण को|
वरीयता मिले सदा ऋतम्भरा सुप्राण को||
No comments:
Post a Comment