Monday, September 19, 2011

ग़ज़ल - सर का ताज बनाये बैठे बेदिली की बानगी को....

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता



सर का ताज बनाये बैठे बेदिली की बानगी को।
हमने सर माथे रखा नायाब अपनी पसंदगी को।


पाक मुहब्बत को अपने सजदा किया था हमने,
मगर शर्मिन्दगी समझ बैठे वो मेरी बन्दगी को।

खेल के सामान से अलहदा न समझे मेरे दिल को,
फकत अदना खिलौना ही समझे मेरी जिन्दगी को।

कैसे बेबस लाचार हम, न कर सके इजहार हम,
अपनी पसंदगी को, अपनी नापसंदगी को।

जुल्मो सितम उनका मगर खुद को दोषी बताते रहे,
हैं खुद हैरान हम देख अपनी इस दीवानगी को।

अपनी बेगुनाही पे तरस खाई न हमने ‘बृजेश’
खुद ही थे मुंसिफ और सजा सुना दी खुदी को।

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