Wednesday, September 28, 2011

ग़ज़ल- मेरी चाहतों को मेरी मजबूरियाँ......

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता




मेरी चाहतों को मेरी मजबूरियाँ समझ बैठे हैं वो,
किसी के शराफत को कमजोरियाँ समझ बैठे हैं वो।

गलबहियाँ औरों से और अपनों से कटते रहे,
अपनी कमियों को अपनी मजबूतियाँ समझ बैठे हैं वो।

कौन अपना कौन पराया समझ आई न अब तक
अपनी नासमझी को अपनी होशियारियाँ समझ बैठे हैं वो।

उनकी सलामती के खातिर दुनिया से लड़ते रहा हरदम
मेरे इस संघर्ष को मेरी दुश्वारियाँ समझ बैठे हैं वो।

न रही एहसान जताने की फितरत हमारी ‘बृजेश’
मेरी इस आदत को दिल की दूरियाँ समझ बैठे हैं वो।

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