Friday, September 30, 2011

ग़ज़ल- बैठे हैं बेबस अपने ही हाथों

ग़ज़ल


रचना - डॉ.बृजेश सिंह
गायक - कृष्‍ण कुमार साहू
तबला वादक  - कन्‍हैया श्रीवास
गि‍टार - रवि‍ गुप्‍ता





बैठे हैं बेबस अपने ही हाथों अपना चमन उजार के।
जी सकते थे बेहतर मगर जिए जैसे-तैसे दिन गुजार के।

‘बृजेश’ दुनिया को सीख देने की फितरत रही हमारी,
मगर बैठे अपने ही मसलों में हम हिम्मत हार के।

न वे समझ सके हमको, न हम उनको समझा सके,
हालात से मजबूर वो भी, बैठे हम भी बैठे थक हार के।

है साथ रहने की जरूरत दोनों को बराबर, मगर
अफसोस साथ निभाया जबरिया मन मार के।

रो धो के शिकवा गिला में दिन रात बस कटते गये,
‘बृजेश’ आया बुलावा चल दिए उपर यूँ हाथ पसार के।

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